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________________ @REFE | उसके आगे १००० खम्भों पर खड़ा हुआ महोदय नाम का मण्डप है, जिसमें मूर्तिमती श्रुतदेवी विद्यमान | रहती है। उस श्रुतदेवी के दाहिने भाग में बहुश्रुत के धारक अनेक धीर-वीर मुनियों से घिरे श्रुतकेवली कल्याणकारी श्रुत का व्याख्यान करते हैं। महोदय मण्डप से आधे विस्तारवाले चार परिवार मण्डप और हैं, जिनमें कथा कहनेवाले पुरुष आक्षेपिणी आदि कथाएँ कहते रहते हैं। इन मण्डपों के समीप में नानाप्रकार | के फुटकर स्थान भी बने रहते हैं, जिनमें बैठकर केवलज्ञान आदि महाऋद्धियों के धारक ऋषि इच्छुकजनों के लिए उनकी इष्टवस्तुओं का निरूपण करते हैं। मिथ्यादृष्टि अभव्य जन श्रीमण्डप के भीतर नहीं जाते - सप्तभूमि में अनेक स्तूप हैं। उनमें सर्वार्थसिद्धि नाम के अनेकों स्तूप हैं। उनके आगे देदीप्यमान शिखरों से युक्त भव्यकूट नाम के स्तूप रहते हैं, जिन्हें अभव्य जीव नहीं देख पाते, क्योंकि उनके प्रभाव से उनके नेत्र अन्धे हो जाते हैं। समवसरण का माहात्म्य - समवसरण में कोठों के क्षेत्र से यद्यपि जीवों का क्षेत्रफल असंख्यातगुणा है, तथापि वे सब जीव जिनदेव के माहात्म्य से एक-दूसरे को स्पर्श किए बिना उसमें समा जाते हैं। इसके अतिरिक्त वहाँ पर जिन भगवान के माहात्म्य से बालक-वृद्ध सभी जीव अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर ही समवसरण में प्रवेश करके अन्दर की ओर अथवा वहाँ से निकलकर बाहर संख्यात योजन चले जाते हैं। इसके अतिरिक्त वहाँ पर जिन भगवान के माहात्म्य से आतंक, रोग, मरण, उत्पत्ति, वैर, कामबाधा तथा तृष्णा (पिपासा) और क्षुधा की पीड़ाएँ नहीं होती हैं। कल्पभूमि के दोनों पार्श्वभाग में प्रत्येक बीथी के आश्रित १६ नाट्यशालाएँ हैं। यहाँ ज्योतिष कन्याएँ नृत्य करती हैं। इसके आगे चौथी वेदी है, इसके आगे भवनभूमियाँ हैं, जिनमें ध्वजा-पताकायुक्त अनेकों भवन हैं। इस भवनभूमि के पार्श्वभागों में प्रत्येक बीथी के मध्य में जिन प्रतिमाओं से युक्त नौ-नौ स्तूप (कुल ७२ स्तूप) हैं। इसके आगे चतुर्थ कोट है, जो कल्पवासी देवों द्वारा रक्षित है। इसके आगे अन्तिम श्रीमण्डप सर्ग | भूमि है। इसमें कुल ६ दीवारें व उनके बीच १२ कोठे हैं, पूर्वदिशा को आदि करके इन १२ कोठों में क्रम १० ERFav 850 ERE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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