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________________ १०१ १०० प्रवचनसार का सार जिन्हें विषयों में रति है, उन्हें आचार्य स्वभाव से ही दुखी कह रहे हैं; वे कर्मोदय से दु:खी नहीं हैं। वे पाँच इन्द्रियों के विषयों की सामग्री प्राप्त नहीं हैं; इसलिए दुःखी नहीं हैं। इसे ही आगे आचार्य इसप्रकार कहेंगे कि पाँच इन्द्रियों के विषयों की प्राप्ति है; इसलिए सुखी नहीं हैं। यहाँ दुःखी का प्रकरण है, इसलिए उनके स्वाभाविक दुःख है - ऐसा आचार्य कह रहे हैं। यह दुःख परजन्य नहीं है, अंतर में पाँच इन्द्रियों के विषयों के प्रति जो रति है, वह उनके दुःख का कारण है। यदि वे स्वभाव से दु:खी नहीं होते तो पाँच इन्द्रियों के विषयों में उनका व्यापार ही नहीं होता। प्रश्न - उन्हें पाँच इन्द्रियों के विषय पुण्य के उदय से मिल गए तो हम क्या करें ? किसी के तो एक भी शादी नहीं होती और चक्रवर्ती की ९६ हजार शादियाँ हो गईं, राजपाट मिल गया है। इसमें उनका क्या दोष? उत्तर - अरे भाई ! पाँच इन्द्रियों के विषय तो पुण्य के उदय से मिले; लेकिन उनका सेवन वह पुण्यभाव से कर रहा है या पापभाव से? उनके सेवन का भाव तो पापभाव ही है। ___ अरे भाई ! संयोगरूप से उपलब्धि भले ही पुण्य का फल होगी; लेकिन उनका सेवन तो पापभाव के बिना संभव नहीं है। यहाँ आचार्य यही सिद्ध कर रहे हैं कि उन्हें स्वाभाविक दुःख है अर्थात् वे किसी अन्य के कारण दुःखी नहीं हैं। टीका में बहुत मार्मिक कहा है कि - 'जिनकी हत इन्द्रियाँ जीवित हैं।' हत अर्थात् हत्यारी, बहुत दुःख देनेवाली, निंदनीय । यहाँ इन्द्रियों के जीवित होने से आशय भोग की इच्छा के विद्यमान होने से है। हत इन्द्रियाँ जिन्दा हैं अर्थात् पाँच इन्द्रियों के भोगने का भाव जिन्दा है। भोगने के भाव के कारण ही दुख है, पर के कारण नहीं। संसारीजीव स्वभाव से ही दु:खी हैं; क्योंकि उनके विषयों में रति छठवाँ प्रवचन देखी जाती है; पाँचों इन्द्रियों के विषयों में प्रेम देखा जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि वे स्वभाव से ही दुःखी हैं। यहाँ स्वभावपर्याय मत लेना। यह संसार के स्वभाव की बात है अर्थात् वे स्त्री-पुत्र के कारण दु:खी नहीं हैं, वे पर के कारण दु:खी नहीं हैं, कर्म के उदय से दुखी नहीं है; उनके अंदर जो विषयचाह है, वे उसके कारण दु:खी हैं। इसके लिए यहाँ पाँच उदाहरण दिए हैं। हाथी हथिनीरूपी कुट्टिनी के शरीर स्पर्श की ओर, मछली बंसी में फँसे हए माँस के स्वाद की ओर, भ्रमर बंद हो जाने पर कमल की गंध की ओर, पतंगा दीपक की ज्योति के रूप की ओर तथा हिरण शिकारी के संगीत के स्वर की ओर दौड़ते हुए दिखाई देते हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि वे स्वाभाविक दु:खी हैं; अन्यथा उनका विषयों की ओर दौड़ना संभव नहीं था। जंगली हाथियों को पकड़ने के लिए जंगल में एक बहुत बड़ा गहरा खड्डा खोदा जाता है। उस पर झीना आवरण डालकर, उसके ऊपर मिट्ठी और दूब-घास व झाड़ियाँ डाल दी जाती हैं। जंगली हाथियों को फंसाने के लिए एक हथिनी को प्रशिक्षित करते हैं। वह चतुर हथिनी अपनी कामुक चेष्टाओं से जंगली हाथियों को आकर्षित करती है, मोहित करती है और अपने पीछे-पीछे आने के लिए प्रेरित करती है। उनसे नानाप्रकार की क्रीड़ाएँ करती हुई, वह हथिनी उन्हें उस गड्डे के समीप लाती है। तेजी से भागती हुई वह कुट्टनी हथिनी तो जानकार होने से उस गड्डे से बचकर निकल जाती है; पर तेजी से पीछा करनेवाला भागता हुआ कामुक हाथी उस गड्ढे में गिर जाता है। इसप्रकार वह अपनी स्वाधीनता खो देता है, बंधन में पड़ जाता है। ____ इसप्रकार स्पर्शन इन्द्रिय के विषय के लिए हाथी, रसना इन्द्रिय के विषय के लिए मछली, घ्राण इन्द्रिय के विषय के लिए भौंरा, चक्षु इन्द्रिय के विषय के लिए पतंगा और कर्णेन्द्रिय के विषय के लिए हिरण का उदाहरण दिया है। 47
SR No.008370
Book TitlePravachansara ka Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size604 KB
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