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________________ २५४ प्रवचनसार का सार ही है। मनुष्य-देवादिरूप व्यंजनपर्यायें अलग-अलग जाति के जीव और पुद्गलों की मिली हुई होने से असमानजातीयद्रव्यपर्यायें हैं। इनमें अहंबुद्धि ही मिथ्यात्व है। ध्यान रहे यहाँ भी पर्याय में असमानजातीयद्रव्यपर्याय को ही लिया गया है। अस्तित्व के बारे में हम पहले ही जान चुके हैं कि वह अस्तित्व दो प्रकार का होता है। एक तो सादृश्यास्तित्व और दूसरा स्वरूपास्तित्व, जिन्हें महासत्ता और अवान्तरसत्ता भी कहते हैं। यह जो अवान्तरसत्ता या स्वरूपास्तित्व है - वह प्रत्येक द्रव्य का अपना-अपना होता है और जो महासत्ता या सादृश्यास्तित्व है - वह सब द्रव्यों का मिला हुआ है। जिसप्रकार किसी व्यक्ति का जो व्यक्तिगत मकान है, वह तो उसी का है; किन्तु मन्दिर सभी का है। उसीप्रकार सम्मेदशिखर सभी का है और घर का कमरा अपना है। उसीप्रकार उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत् - यह जीव का भी लक्षण है और पुद्गल का भी लक्षण है अर्थात् यह लक्षण सभी द्रव्यों का है; किन्तु प्रत्येक द्रव्य के या स्वरूपास्तित्व संपन्न इकाई के लक्षण अलग-अलग हैं। _इसप्रकार एक द्रव्य का स्वरूपास्तित्व और दूसरे द्रव्य का स्वरूपास्तित्व - ये दोनों मिलकर जो एक पर्याय बनती है, उसे अनेकद्रव्यपर्याय या व्यञ्जनपर्याय कहते हैं। ____ इसे हम इसप्रकार भी समझ सकते हैं कि जिसप्रकार भारत, पाकिस्तान और बांगलादेश - ये सभी अपने स्वतंत्र अस्तित्व को कायम रखते हुए मिलकर एक महासंघ बना लें और उसका नाम रखें भारतीय महासंघ। यह भारतीय महासंघ अनेकद्रव्यपर्याय की भांति ही होगा। अमेरिका में तो यही हुआ है। अमेरिका अर्थात् यू.एस.ए. में हिन्दुस्तान, पाकिस्तान जैसे केलिफोर्निया आदि अनेक देश शामिल हैं। ऐसे ५० देशों से मिलकर जो देश बना है, उसका नाम है यू.एस.ए. सोलहवाँ प्रवचन २५५ अर्थात् यूनाईटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका और उनके झण्डे में ५० बिन्दियाँ हैं, जो यह बताती हैं कि यह ५० देशों का झण्डा है अर्थात् यूनाईटेड स्टेट्स का झंडा है। __वहाँ के देश हिन्दुस्तान के राजस्थान, मध्यप्रदेश की भांति नहीं है; क्योंकि हिन्दुस्तान के राजस्थान आदि तो प्रान्त हैं और वे सभी देश हैं। सोवियत संघ भी इसीप्रकार कई देशों का समूह था। कहने का तात्पर्य यह है कि जिसप्रकार यूनाईटेड स्टेट्स में देशों का स्वरूपास्तित्व खत्म नहीं होता, बल्कि कायम रहता है। उसीप्रकार यदि भारत महासंघ में भी पाकिस्तान को मिला लिया तो पाकिस्तान का स्वरूपास्तित्व खत्म नहीं होगा, वह देश कायम रहेगा। लेकिन भारत महासंघ के देश यूनाईटेड होने के कारण उनमें सुरक्षा का साधन अर्थात् सेना एक ही रहेगी, विदेश विभाग एक रहेगा; शेष सब काम उन देशों का रहेगा, उनमें प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का कोई हस्तक्षेप नहीं रहेगा। ___भारत में अभी राजस्थान आदि प्रान्त है, देश नहीं। वे युनाइटेड (संगठित) नहीं, अपितु एक ही हैं। प्रान्त आदि का भेद तो मात्र व्यवस्था के लिए है। __उसीप्रकार जीव और पुद्गलों की अपनी-अपनी सत्ता का अस्तित्व कायम रहकर जो यह मनुष्यपर्याय बनी है; इसमें पुद्गल के एक भी परमाणु ने अपना अस्तित्व खोया नहीं है। इसप्रकार हम कह सकते हैं कि स्वरूपास्तित्व वर्तमान भारत के समान इकाई (यूनिट) है और सादृश्यास्तित्व यू.एस.ए. के समान अनेक इकाइयों का संगठित समुदाय है। ___गाथा १५२ की टीका में एक विशेष बात और कह दी है कि इसमें अर्थपर्याय बाधा नहीं पहुँचाती। जिसप्रकार किसी की आत्मा को सम्यग्दर्शन हो तो पुद्गल कोई हस्तक्षेप करनेवाला नहीं है और पुद्गल में रूप-रस-गंध में कोई परिवर्तन होने पर आत्मा उनमें कोई हस्तक्षेप 124
SR No.008370
Book TitlePravachansara ka Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size604 KB
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