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________________ परिशिष्ट : सैंतालीस नय ५६५ “आत्मद्रव्य अशुद्धनय से घट और रामपात्र से विशिष्ट मिट्टी मात्र के समान सोपाधिस्वभाववाला है और शुद्धनय सेकेवल मिट्टी के समान निरुपाधिस्वभाववालाहै।।४६-४७॥" जिसप्रकार मिट्टी अपने सोपाधिस्वभाव के कारण घट, रामपात्र आदि पर्यायों में परिणमित होती है और निरुपाधिस्वभाव के कारण मिट्टीरूप ही रहती है; उसीप्रकार यह भगवान आत्मा भी अपने सोपाधिस्वभाव के कारण रागादिरूप परिणमित होता हुआ अशुद्ध होता है और निरुपाधिस्वभाव के कारण सदा शुद्ध ही रहता है। अनन्तधर्मात्मक इस भगवान आत्मा में अन्य अनन्त धर्मों के समान एक अशुद्ध नामक धर्म भी है, जिसके कारण यह भगवान आत्मा विकारी भावरूप परिणमित होता है और एक शुद्ध नामक धर्म भी है, जिसके कारण यह भगवान आत्मा सदा एकरूप ही रहता है। इन अशुद्ध और शुद्ध धर्मों को सोपाधिस्वभाव और निरुपाधिस्वभाव भी कहते हैं। भावरूप परिणमित होना ही सोपाधिस्वभाव है और सदा एकरूप रहना ही निरुपाधिस्वभाव है। इसप्रकार यह भगवान आत्मा अशुद्ध भी है और शुद्ध भी है। अशुद्धधर्म के कारण रागादिरूप परिणमित होता है; अत: अशुद्ध है और शुद्धधर्म के कारण सदा एकरूप रहता है; अतः शुद्ध है। इसे इसप्रकार भी कह सकते हैं कि यह भगवान आत्मा अशुद्धनय से सोपाधिस्वभाववाला है और शुद्धनय से निरुपाधिस्वभाववाला है। ____ भगवान आत्मा के इन सोपाधिस्वभाव व निरुपाधिस्वभाव अर्थात् अशुद्धधर्म व शुद्धधर्म को विषय बनानेवाले नय ही क्रमश: अशुद्धनय व शुद्धनय हैं। अशुद्धनय के माध्यम से यहाँ यह कहा जा रहा है कि आत्मा में उत्पन्न होनेवाले रागादि विकारीभाव भी पर के कारण उत्पन्न नहीं होते, उनकी उत्पत्ति के कारण भी आत्मा में ही विद्यमान हैं। यदि आत्मा में अशुद्धधर्म नामक धर्म नहीं होता तो दुनिया की कोई भी शक्ति उसे रागादिभावरूप परिणमित नहीं करा सकती थी। उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि यह भगवान आत्मा अशुद्धनय से सोपाधिस्वभाव वाला अर्थात् अशुद्ध है और शुद्धनय से निरुपाधिस्वभाववाला अर्थात् शुद्ध है।। इसप्रकार यह भगवान आत्मा शुद्ध भी है और अशुद्ध भी है। इसप्रकार ४७ धर्मों के माध्यम से भगवान आत्मा का स्वरूप स्पष्ट करनेवाले ४७ नयों का संक्षिप्त स्वरूप कहा।
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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