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________________ ५३२ प्रवचनसार ___नामनयेन तदात्मवत् शब्दब्रह्मामर्शि ।।१२।। स्थापनानयेन मूर्तित्ववत्सकलपुद्गलालम्बि।।१३।। द्रव्यनयेन माणवकश्रेष्ठिश्रमणपार्थिववदनागतातीतपर्यायोद्भासि।।१४।।भावनयेन पुरुषायितप्रवृत्तयोषिद्वत्तदात्वपर्यायोल्लासि।।१५।। अनन्तधर्मात्मक आत्मा के अनन्तधर्मों में एक भेदधर्म है और एक अभेदधर्म है, जिन्हें विकल्पधर्म और अविकल्पधर्म भी कहते हैं। इन विकल्पधर्म और अविकल्पधर्म को विषय बनानेवाले नय ही क्रमश: विकल्पनय और अविकल्पनय हैं|१०-११|| विकल्पनय और अविकल्पनय के विवेचन के उपरान्त अब चार निक्षेप संबंधी नयों की चर्चा करते हैं - ___ “आत्मद्रव्य नामनय से नामवाले की भाँति शब्दब्रह्म को स्पर्श करनेवाला है, स्थापनानय से मूर्तिपने की भाँति सर्वपुद्गलों का अवलम्बन करनेवाला है, द्रव्यनय से बालकसेठ और श्रमणराजा की भाँति अनागत और अतीत पर्याय से प्रतिभासित होता है और भावनय से पुरुष के समान प्रवर्तमान स्त्री की भाँति वर्तमान पर्यायरूप से उल्लसित - प्रकाशित - प्रतिभासित होता है।।१२-१५।।" उक्त चार नय निक्षेपों सम्बन्धी नय हैं। भगवान आत्मा में नाम, स्थापना, द्रव्य एवं भाव नामक चार धर्म हैं, जिन्हें उक्त चार नय क्रमश: अपना विषय बनाते हैं। जगत में जितने भी पदार्थ हैं, वे सभी किसी न किसी नाम से जाने जाते हैं। बिना नाम का कोई भी पदार्थ जगत में नहीं है। आत्मा भी एक पदार्थ है; अत: वह भी 'आत्मा' - इस नाम से जाना जाता है। यदि आत्मा में नाम नामक धर्म नहीं होता तो फिर उसका प्रतिपादन संभव नहीं था। जिसप्रकार आत्मा में एक ऐसा धर्म है, जिसके कारण आत्मा किसी नाम द्वारा जाना जाता है; उसीप्रकार एक ऐसा भी धर्म है, जिसके कारण आत्मा स्थापना द्वारा भी जाना जा सकता है। आत्मा की स्थापना किसी न किसी पुद्गल में की जाती है; अत: यहाँ कहा गया है कि आत्मद्रव्य स्थापनानय से मूर्तिपने की भाँति सर्वपुद्गलों का अवलम्बन करनेवाला है। जिसप्रकार मूर्ति में भगवान की स्थापना की जाती है, उसीप्रकार किसी भी पुद्गलपिण्ड में आत्मा की भी स्थापना की जा सकती है। जिस वस्तु में जिस व्यक्ति की स्थापना की जाती है, उस वस्तु के देखने पर वह व्यक्ति खयाल में आता है - इसप्रकार वह वस्तु स्थापना के द्वारा उस व्यक्ति का ज्ञान करानेवाली हुई।
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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