________________
९. कठिन विषय को स्पष्ट करने के लिए हिन्दी टीकाकार ने अनेक स्थानों पर अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाने का सफल प्रयास किया है।
१०. जिन-अध्यात्म का प्राथमिक अध्ययन करनेवाले को भी इस कृति के स्वाध्याय से अध्यात्म के मूल विषय का ज्ञान सहज हो जायेगा।
१२. प्रत्येक अधिकार के आरंभ में उसके पूर्व समागत विषयवस्तु का संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण इस कृति की अपनी अलग विशेषता है; जिसके कारण पाठकों को विषयवस्तु का क्रमिक विकास और तारतम्य सहज ही स्पष्ट होता जाता है।
१३. सरलता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, जिसके कारण साधारण से साधारण अनभ्यासी पाठकों का भी प्रवेश प्रवचनसार और तत्त्वप्रदीपिका टीका में सहज हो जायेगा।
१४. दातारों के सहयोग से लागत मूल्य ९५/- होने पर भी ५०/- में जितनी चाहे, उतनी संख्या में सर्वत्र सहज उपलब्ध होना भी एक ऐसा कारण है कि जिसके कारण यह कृति प्रत्येक मंदिर में प्रतिदिन के स्वाध्याय में रखी जावेगी और न केवल वक्ता के हाथ में, अपितु प्रत्येक श्रोता के हाथ में भी यह उपलब्ध रहेगी।"
इसके अतिरिक्त ग्रन्थ और ग्रन्थकार का विस्तृत परिचय भी डॉ. भारिल्ल ने स्वयं लिखा है।
मैं एक छोटी सी बात लिखने में भी गौरव का अनुभव करता हूँ कि मैं डॉ. भारिल्ल की प्रत्येक कृति का अध्ययन प्रकाशन से पूर्व ही कर लेता हूँ। इस प्रवचनसार की ज्ञायज्ञेयतत्त्वप्रबोधिनी टीका को भी मैंने प्रकाशन से पूर्व सूक्ष्मता से अनेक बार स्वयं पढ़ा है।
इस ग्रंथ के बाह्य सौन्दर्य को भी बढाने के लिए भी हमने ७ प्रकार के जिन टाइपों का प्रयोग किया है; वे इसप्रकार हैं - १. मूल गाथा एकदम बड़े-बड़े टाइप में दी है। २. गाथा की संस्कृत छाया का टाइप अलग है। ३. गाथा के अर्थ के लिए बोल्ड-इटैलिक टाइपका प्रयोग किया है। ४. गाथा पद्यानुवाद भिन्न-भिन्न प्रकार के टाइप में है। ५. आचार्य अमृतचन्द्र कृत तत्त्वप्रदीपिका नामक संस्कृत टीका का टाइप अपने में स्वतंत्र है । ६. तत्त्वप्रदीपिका के संस्कृत गद्य का हिन्दी अनुवाद का टाइप स्वतंत्र है । ७. हिन्दी टीकाकार डॉ. भारिल्ल के विवेचन का टाइप तो अलग है ही, उसमें भी जो भाग अति महत्त्वपूर्ण है, उसे और भी भिन्न तथापि बड़े अक्षरों में देने का प्रयास किया गया है। ___ इतनी सशक्त, सरल, सुबोध और सार्थक टीका की रचना के लिए हिन्दी टीकाकार डॉ. भारिल्ल; सुन्दरतम प्रकाशन के लिए प्रकाशन विभाग के प्रभारी अखिल बंसल; शुद्ध मुद्रण के लिए इसके प्रूफ देखनेवाले सचिन शास्त्री; कम्पोजिंग और सेटिंग के लिए दिनेश शास्त्री और लगभग आधी कीमत में उपलब्ध कराने वाले आर्थिक सहयोगियों के हम हृदय से आभारी हैं और सभी को कोटिशः धन्यवाद देते हैं।
जिनप्रवचन के सार प्रवचनसार का हार्द समझने में यह कृति अत्यन्त उपयोगी है। हमें विश्वास है कि पाठकगण प्रवचनसार की विषयवस्तु को समझने के लिए इस कृति का भरपूर उपयोग अवश्य करेंगे। १८ अप्रैल २००८ ई.
-ब्र. यशपाल जैन एम.ए. (महावीर जन्म दिवस)
प्रकाशन मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर (राज.)