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________________ ४२८ प्रवचनसार इस गाथा का भाव आचार्य अमृतचन्द्र तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं "जो उपधि बंध की सर्वथा असाधक होने से अनिंदित है, संयमीजनों को छोड़कर अन्य किसी के काम की न होने से असंयतजनों के द्वारा अप्रार्थनीय है और रागादिभावों के बिना धारण की जानेवाली होने से मूर्छादि की अनुत्पादक है; वह उपधिवस्तुतः अनिषिद्ध है, उपादेय है; किन्तु उक्त स्वरूपसे विपरीत स्वरूपवाली उपधि अल्पभी उपादेय नहीं है।" इस गाथा में मात्र इतनी बात कही गई है कि जब मुनिराज अपवादमार्ग में होते हैं, तब उनके पास तीन वस्तुएँ हो सकती हैं - दया का उपकरण पीछी, संयम (शुद्धि) का उपकरण कमण्डलु और ज्ञान का उपकरण शास्त्र । ये तीनों वस्तुएँ अनिन्दित, अप्रार्थनीय और रागादि की अनुत्पादक होना चाहिए। पीछी और कमण्डलु गृहस्थों के काम के नहीं हैं; इसलिए उन्हें कोई माँगेगा नहीं; इसलिए अप्रार्थनीय हैं, कीमती नहीं हैं, इसलिए कोई चुरायेगा नहीं और आकर्षक नहीं हैं; इसकारण राग को उत्पन्न नहीं करेंगे। ये दोनों तो एक-एक ही रखे जाते हैं; पर शास्त्र अनेक रखे जा सकते हैं; अत: अल्प होना चाहिए- यह कहा है; क्योंकि अधिक होंगे तो साथ में ले चलना संभव नहीं होगा। यदि उक्त तीनों वस्तुएँ ऐसी हों कि जिन्हें बाजार में बेचकर पैसा कमाया जा सकता है, तो उनकी रक्षा के विकल्प हुए बिना नहीं रहेंगे; क्योंकि उन वस्तुओं की चोरी भी हो सकती है और उन्हें कोई माँग भी सकता है। __यह तो आप जानते ही हैं कि मुनिराज प्रातः, दोपहर और सायं को प्रतिदिन तीन बार छहछह घड़ी की सामायिक करते हैं, आत्मध्यान करते हैं। एक घड़ी २४ मिनिट की होती है। इसप्रकार वे २ घंटे और २४ मिनिट दिन में तीन बार कुल ७ घंटे और १२ मिनट तक प्रतिदिन आत्मध्यान करते हैं। यदि पीछी, कमण्डलु और पोथी कीमती हुईं तो सामायिक के काल में उनकी रक्षा कौन करेगा? उक्त वस्तुओं का ग्रहस्थों के काम की नहीं होना ही उनकी रक्षा का सबसे निरापद उपाय है। चूँकि ये वस्तुएँ कीमती नहीं हैं; अत: कोई चुरायेगा नहीं और मुनिराजों के चित्त में उनके प्रति एकत्व-ममत्व नहीं है, राग नहीं है; अत: ये उनके चुराये जाने के भय से मुक्त रहेंगे। इसप्रकार उक्त तीनों वस्तुएँ उनके पास होकर भी उनकी नहीं हैं, उनके चित्त को आन्दोलित
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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