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________________ २८० प्रवचनसार सवर्गत न होने से उनके यह संभव नहीं है। हेतुत्वमप्रदेशत्वात्कालपुद्गलयोः, समुद्घातादन्यत्र लोकासंख्येयभागमात्रत्वाज्जीवस्य । लोकालोकसीम्नोऽचलितत्वादाकाशस्य, विरुद्धकार्यहेतुत्वादधर्मस्यासंभवद्धर्ममधिगमयति । तथैकवारमेव स्थितिपरिणतसमस्तजीवपुद्गलानामालोकात्स्थानहेतुत्वमप्रदेशत्वाकालपुद्गलयोः, समुद्घातादन्यत्र लोकासंख्येयभागमात्रत्वाजीवस्य लोकालोकसीम्नोऽचलितत्वादाकाशस्य, विरुद्धकार्यहेतुत्वाद्धर्मस्य चासंभवदधर्ममधिगमयति। तथा अशेषशेषद्रव्याणांप्रतिपर्यायं समयवृत्तिहेतुत्वं कारणान्तरसाध्यत्वात्समयविशिष्टाया वृत्ते: स्वतस्तेषामसंभवत्कालमधिगमयति । तथा चैतन्यपरिणामश्चेतनत्वादेव शेषद्रव्याणामसंभवन् जीवमधिगमयति। एवं गुणविशेषाद्रव्यविशेषोऽधिगन्तव्यः ।।१३३-१३४।। इसीप्रकार एक ही काल में गतिपरिणत समस्त जीव और पुद्गलों को लोक तक गमन का हेतुपना धर्मद्रव्य को बतलाता है; क्योंकि काल और पुद्गल अप्रदेशी हैं, इसलिए उनके यह संभव नहीं है; जीव समुद्घात को छोड़कर अन्यत्र लोक के असंख्यातवें भागमात्र है; इसलिए उसको यह संभव नहीं है। लोक-अलोक की सीमा अचलित होने से आकाश को यह संभव नहीं है और विरुद्धकार्य का हेतु होने से अधर्मद्रव्य को यह संभव नहीं है। इसीप्रकार एक ही काल में स्थितिपरिणत समस्त जीव-पुद्गलों कोलोक तक स्थिति काहेतुपना अधर्मद्रव्य को बतलाता है; क्योंकि काल और पुद्गल अप्रदेशी होने से उनके यह संभव नहीं है। जीव समुद्घात को छोड़कर अन्यत्र काल के असंख्यातवें भागमात्र है; इसलिए उसके यह संभव नहीं है। लोक और अलोक की सीमा अचलित होने से आकाश के यह संभव नहीं है और विरुद्धकार्य का हेतु होने से धर्मद्रव्य के यह संभव नहीं है। इसीप्रकार काल के अतिरिक्त शेष समस्त द्रव्यों के प्रत्येक पर्याय में समयवृत्ति का हेतुपना काल को बतलाता है; क्योंकि उन शेष समस्त द्रव्यों के समयविशिष्टवृत्ति कालान्तर से सधती होने से उनके वह समयवृत्ति हेतुपना संभवित नहीं है। इसीप्रकार चैतन्यपरिणाम जीव को बतलाता है; क्योंकि वह चेतन होने से शेष द्रव्यों के संभव नहीं है। इसप्रकार गुणविशेष से द्रव्यविशेष जानना चाहिए।" प्रश्न – उक्त संदर्भ में महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्र में द्रव्यों के उपकार की चर्चा करते हुए कहा है कि जीवन-मरण और सुख-दुख - ये पुद्गल द्रव्य के जीवों पर उपकार हैं। अब यहाँ प्रश्न यह है कि क्या जीवन के साथ मरण भी उपकार है और सुख के साथ दुख भी उपकार है ? उत्तर- अरे भाई! यहाँ उपकार का अर्थ भलाई नहीं है, मात्र निमित्त है। तात्पर्य यह है कि
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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