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________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन: द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार की उक्त परिभाषायें पूर्णत: घटित होती हैं ।। १२२ ।। 'भावकर्म का कर्ता आत्मा और द्रव्यकर्म का कर्ता पुद्गल' - विगत गाथा में उक्त तथ्य को स्पष्ट करने के उपरान्त अब इन गाथाओं में यह बताते हैं कि आत्मा ज्ञानचेतना, कर्मचेतना और कर्मफलचेतनारूप परिणमित होता है। गाथाओं का पद्यानुवाद इसप्रकार है( हरिगीत ) - करम एवं करमफल अर ज्ञानमय यह चेतना । ये तीन इनके रूप में ही परिणमे यह आतमा ।। १२३ ।। ज्ञान अर्थविकल्प जो जिय करे वह ही कर्म है। अनेकविध वह कर्म है अर करमफल सुख - दुक्ख हैं ।। १२४॥ २५७ यतो हि नाम चैतन्यमात्मनः स्वधर्मव्यापकत्वं, ततश्चेतनैवात्मनः स्वरूपं तया खल्वात्मा परिणमति । यः कश्चनाप्यात्मनः परिणामः स सर्वोऽपि चेतनां नातिवर्तत इति तात्पर्यम् । चेतना पुनर्ज्ञानकर्मकर्मफलत्वेन त्रेधा । तत्र ज्ञानपरिणतिर्ज्ञानचेतना, कर्मपरिणति: कर्मचेतना, कर्मफलपरिणति: कर्मफलचेतना । । १२३ ।। अर्थविकल्पस्तावत् ज्ञानम् । तत्र कः खल्वर्थः, स्वपरविभागेनावस्थितं विश्वं, विकल्पस्तदाकारावभासनम् । यस्तु मुकुन्दहृदयाभोग इव युगपदभासमानस्वपराकारोऽर्थविकल्पस्तद् ज्ञानम् । क्रियमाणमात्मना कर्म, क्रियमाणः खल्वात्मा प्रतिक्षणं तेन तेन भावेन भवता यः तद्भावः स एव कर्मात्मना प्राप्यत्वात् । तत्त्वेकविधमपि द्रव्यकर्मोपाधिसन्निधिसद्भावासद्भावाभ्यामनेकविधम् । तस्य कर्मणो यन्निष्पाद्यं सुखदुःखं तत्कर्मफलम् । तत्र द्रव्यकर्मोपाधिसान्निध्या आत्मा चेतनारूप से परिणमित होता है और चेतना ज्ञानसंबंधी, कर्मसंबंधी और कर्मफलसंबंधी - इसप्रकार तीन प्रकार की कही गई है। अर्थविकल्प ज्ञान है, जीव के द्वारा जो किया जा रहा हो, वह कर्म है और वह अनेकप्रकार का है। सुख या दुःख कर्मफल कहे गये हैं। इन गाथाओं का भाव तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है। - .. 'आत्मा का स्वधर्मव्यापकपना चेतना ही है; इसलिए चेतना ही आत्मा का स्वरूप है; क्योंकि आत्मा चेतनरूप परिणमित होता है। तात्पर्य यह है कि आत्मा का कोई भी परिणाम चेतना का उल्लंघन नहीं करता । चेतना ज्ञानरूप, कर्मरूप और कर्मफलरूप से तीन प्रकार की होती है। इसमें ज्ञानपरिणति
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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