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________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार परन्तु शेष सभी गुणों में सत्ता का रूप होने से वे भी सत्तास्वरूप हैं। ज्ञान का अस्तित्व है, चारित्र का अस्तित्व है। उनमें अस्तित्व गुण का रूप होने से सभी गुणों का अस्तित्व है। __सब द्रव्यों में सत्ता नामक गुण पृथक्-पृथक् हैं; परंतु आत्मा के सभी गुणों में सत्ता नामक एक ही गुण है। आत्मा की सभी पर्यायों में एक ही सत्ता गुण है। स्वरूपास्तित्व नामक जो सत्ता है, वह एक ही है। वह हमारे सम्पूर्ण द्रव्य, गुणों और पर्यायों में व्याप्त होती है; लेकिन सादृश्यास्तित्वरूप महासत्ता सभी द्रव्यों में व्याप्त है। वह एक नहीं है, अनेक है। आचार्यदेव ने जाति की अपेक्षा उसे एक है- ऐसा कहा है। एक द्रव्य के दो गुणों के मध्य अतद्भाव होता है; परन्तु दो द्रव्यों के मध्य अतद्भाव नहीं होता, अत्यंताभाव होता है। जिसमें द्रव्य-क्षेत्र-काल और भावरूपचतुष्टय भिन्न-भिन्न हों, उसे अत्यंताभाव कहते हैं। अथातद्भावमुदाहृत्य प्रथयति - सद्दव्वं सच्च गुणो सच्चेव य पज्जओ त्ति वित्थारो। जो खलु तस्स अभावो सो तदभावो अतब्भावो॥१०७।। सद्रव्यं संश्च गुणः संश्चैव च पर्याय इति विस्तारः । यः खलु तस्याभावः स तदभावोऽतद्भावः ।।१०७।। यथा खल्वेकं मुक्ताफलस्रग्दाम, हार इति सूत्रमिति मुक्ताफलमिति त्रेधा विस्तार्यते, तथै द्रव्यं द्रव्यमिति गुण इति पर्याय इति त्रेधा विस्तार्यते।। __ यथा चैकस्य मुक्ताफलस्रग्दाम्नः शुक्लो गुण: शुक्लो हारः शुक्लं सूत्रं शुक्लं मुक्ताफलमिति त्रेधा विस्तार्यते, तथैकस्य द्रव्यस्य सत्तागुणः सद्व्यं सद्गुणः सत्पर्याय इति त्रेधा विस्तार्यते। एक द्रव्य की पर्यायों के मध्य परस्पर अतद्भाव होता है और गुणों के मध्य भी परस्पर अतद्भाव होता है। द्रव्य और गुण के मध्य भी परस्पर अतद्भाव होता है और गुण और पर्याय के मध्य भी परस्पर अतद्भाव होता है। द्रव्य और पर्याय के मध्य भी अतद्भाव होता है; परंतु दो द्रव्यों के मध्य अत्यंताभाव होता है। ___इसप्रकार यह सुनिश्चित हुआ कि एक द्रव्य के द्रव्य-गुण-पर्यायों के बीच परस्पर अतद्भाव है और दो द्रव्यों के बीच अत्यन्ताभाव होता है।।१०६|| ___ विगत गाथा में प्रदेशभेदवाले पृथक्त्व और अतद्भाववाले अन्यत्व का स्वरूप स्पष्ट किया गया है; अब इस १०७वीं गाथा में अतद्भाव को विस्तार से सोदाहरण स्पष्ट करते हैं।
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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