SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार २२५ है। वह इसप्रकार है - जिसप्रकार सफेदीरूपगुण के जो प्रदेश हैं, वे ही दुपट्टेरूपगुणी के भी हैं; इसलिए उनमें प्रदेशभेद नहीं है। इसीप्रकार सत्तागुण के जो प्रदेश हैं, वे ही प्रदेश गुणी द्रव्य के भी हैं; इसलिए उनमें प्रदेशभेद नहीं है। ऐसा होने पर भी सत्ता और द्रव्य में अन्यत्व है; क्योंकि इनमें अन्यत्व का लक्षण घटित होता है । अतद्भाव अन्यत्व का लक्षण है। वह तो सत्ता और द्रव्य में है ही; क्योंकि गुण और गुणी में सफेदी और दुपट्टे के समान तद्भाव का अभाव होता है। ____वह इसप्रकार है कि जिसप्रकार एक चक्षु इन्द्रिय के विषय में आनेवाला और अन्य सभी इन्द्रियों के गोचर न होनेवाला जो सफेदीरूप गुण है; वह समस्त इन्द्रियों को गोचर होनेवाले दुपट्टेरूप गुणी नहीं हैं और जो समस्त इन्द्रिय समूह को गोचर होनेवाला दुपट्टा है, वह एक चक्षुइन्द्रिय के विषय में आनेवाला तथा अन्य समस्त इन्द्रियों के विषय में नहीं आनेवाला सफेदीरूप गुण नहीं है। इसलिए उनके तद्भाव का अभाव है। ___ तथा या किलाश्रित्य वर्तिनी निर्गुणैकगुणसमुदिता विशेषणं विधायिका वृत्तिस्वरूपा च सत्ता भवति, न खलु तदनाश्रित्य वर्ति गुणवदनेकगुणसमुदितं विशेष्यं विधीयमानं वृत्तिमत्स्वरूपं च द्रव्यं भवति न खलु साश्रित्य वर्तिनी निर्गुणैकगुणसमुदिता विशेषणं विधायिका वृत्तिस्वरूपा च सत्ता भवतीति तयोस्तद्भावस्याभावः। ___ अत एव च सत्ताद्रव्ययोः कथंचिदनर्थान्तरत्वेऽपि सर्वथैकत्वं न शङ्कनीयं, तद्भावो होकत्वस्य लक्षणम् । यत्तुन तद्भवद्विभाव्यते तत्कथमेकं स्यात्। अपितु गुणगुणिरूपेणानेकमेवेत्यर्थः।।१०६॥ उसीप्रकार किसी के आश्रय रहनेवाली, स्वयं निर्गुण, एक गुणमय, विशेषण, विधायक और वृत्तिस्वरूपजोसत्ता (सत्ता गुण-अस्तित्व गुण) है; वह किसी के आश्रय बिनारहनेवाला, गुणवाला, अनेक गुणमय, विशेष्य, विधीयमान और वृत्तिमानस्वरूप द्रव्य नहीं है तथा जो किसीके आश्रय बिनारहनेवाला, गुणवाला, अनेक गुणमय, विशेष्य, विधीयमान और वृत्तिमानस्वरूपद्रव्य है; वह किसीके आश्रित रहनेवाली, निर्गुण, एकगुणमय, विशेषण, विधायक और वृत्तिस्वरूप सत्ता नहीं है। इसलिए इनके तद्भाव का अभाव है। __ ऐसा होने से यद्यपि सत्ता और द्रव्य के कथंचित् अनर्थान्तरत्व (अभिन्नता) है; तथापि उनके सर्वथा एकत्व होगा - ऐसी शंका नहीं करना चाहिए; क्योंकि तद्भाव एकत्व का लक्षण है। जो तद्भावरूप नहीं हो, वह सर्वथा एक कैसे हो सकता है ? वह तोगुण-गुणीभेद से अनेक ही है।"
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy