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________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार २१३ के भावस्वभाव से अवभासन है। तात्पर्य यह है कि नाश अन्यभाव के उत्पादरूप ही होता है। ___ जो कुंभ का सर्ग और पिण्ड का संहार है, वही मिट्टी की स्थिति है; क्योंकि व्यतिरेक अन्वय का अतिक्रमण नहीं करते। जो मिट्टी की स्थिति है, वही कुंभ का सर्ग और पिण्ड का संहार है; क्योंकि व्यतिरेकों द्वारा ही अन्वय प्रकाशित होता है। यदि ऐसान माना जाय तो ऐसा सिद्ध होगा कि सर्ग अन्य है, संहार अन्य है और स्थिति अन्य है। ऐसा होने पर केवल सर्गशोधक कुंभ की, उत्पादन कारण का अभाव होने से उत्पत्ति ही नहीं होगी अथवा असत् का उत्पाद होगा। यदि कुंभ की उत्पत्ति न होगी तो समस्त भावों की उत्पत्ति ही नहीं होगी अथवा यदि असत् का उत्पाद हो तो आकाश पुष्प का भी उत्पाद होगा। तथा केवलां स्थितिमुपगच्छन्त्या मृत्तिकायाव्यतिरेकाक्रान्तस्थित्यन्वयाभावादस्थानिरेव भवेत्, क्षणिकनित्यत्वमेव वा। तत्र मृत्तिकाया अस्थानौ सर्वेषामेव भावानामस्थानिरेव भवेत् । क्षणिकनित्यत्वे वा चित्तक्षणानामपि नित्यत्वं स्यात् । तत उत्तरोत्तरव्यतिरेकाणां सर्गेण पूर्वपूर्वव्यतिरेकाणां संहारेणान्वयस्यावस्थानेनाविनाभूतमुद्योतमाननिर्विघ्नत्रैलक्षण्यलाञ्छनं द्रव्यमवश्यमनुमन्तव्यम्।।१००।। अथोत्पादादीनां द्रव्यादर्थान्तरत्वं संहरति - उप्पादट्ठिदिभंगा विजंते पज्जएसु पज्जाया। दव्वे हि संति णियदं तम्हा दव्वं हवदि सव्वं ।।१०१।। तात्पर्य यह है कि बात मात्र कुंभ की ही नहीं है, अपितु कोई भी कार्य सम्पन्न न होगा अथवा जिसकी लोक में सत्ता ही नहीं है - ऐसे आकाश के फूल और गधे के सींगों की उत्पत्ति भी होने लगेगी; क्योंकि उत्पन्न होने और नहीं होने का कोई नियम ही नहीं रहा। यदि मिट्टी केवल स्थिति को ही धारण करे तो व्यतिरेकों सहित स्थिति का अभाव होने से स्थिति ही नहीं होगी अथवा क्षणिक को भी नित्यत्व आ जायेगा। तथा यदि मिट्टी की स्थिति न हो तो समस्त ही भावों की स्थिति नहीं होगी अथवा क्षणिक नित्य हो जाय तो चित्त के क्षणिक भावों को भी नित्यत्व का प्रसंग आयेगा; इसलिए द्रव्य को उत्तरोत्तर व्यतिरेकों के सर्ग के साथ, पूर्व-पूर्व के व्यतिरेकों के संहार के साथ और अन्वय के अवस्थान ध्रौव्य के साथ अविनाभाववालाऔर अबाधित भिन्न त्रिलक्षणवाला अवश्य मानना चाहिए।"
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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