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________________ ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन वस्तु के अभाव में निराश्रय परिणाम को शून्यता का प्रसंग आता है। वस्तु पुनरूतासामान्यलक्षणे द्रव्ये सहभाविविशेषलक्षणेषु गुणेषु क्रमभाविविशेषलक्षणेषु पर्यायेषु व्यवस्थितमुत्पादव्ययध्रौव्यमयास्तित्वेन निर्वर्तितनिर्वृत्तिमच्च । अतः परिणामस्वभावमेव ।।१०।। अथ चारित्रपरिणामसंपर्कसम्भवतो: शुद्धशुभपरिणामयोरुपादानहानाय फलमालोचयति___ धम्मेण परिणदप्पा अप्पा जदि सुद्धसंपयोगजुदो। पावदि णिव्वाणसुह सुहोवजुत्तो य सग्गसुह ।।११।। वस्तु तोऊर्ध्वतासामान्यस्वरूपद्रव्य में, सहभावी विशेषस्वरूपगुणों में तथा क्रमभावी विशेषस्वरूप पर्यायों में रही हुई और उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यमय अस्तित्व से बनी हुई है। इसलिए परिणामस्वभावी ही है।" विशेषकर दृष्टि के विषय के सन्दर्भ में अध्यात्म के जोर में आत्मवस्तु को पर्याय (परिणाम) से भिन्न बताया जाता है; किन्तु यहाँ जोर देकर यह बताया जा रहा है कि परिणाम वस्तु से अभिन्न होता है। परिणमन को आत्मा से सर्वथा भिन्न मानने पर आत्मा एकान्त से नित्य सिद्ध होगा और सर्वथा अभिन्न मानने पर एकान्त से अनित्य सिद्ध होगा। इसप्रकार या तो नित्यैकान्त का प्रसंग आयेगा या फिर अनित्यैकान्त का प्रसंग आयेगा। तात्पर्य यह है कि परिणाम और परिणामी द्रव्य में कथंचित भेद और कथंचित अभेद होता है। वस्तुत: बात यह है कि जब दृष्टि के विषयभूत भगवान आत्मा की बात चलती है, तब आत्मा को परिणाम अर्थात् पर्याय से भिन्न बताया जाता है; किन्तु जब धर्मात्मा, पुण्यात्मा या पापात्मा की बात चलती है, तब आत्मा को वर्तमान पर्याय से तन्मय बताया जाता है। यहाँ वर्तमान पर्याय से तन्मय आत्मा की बात चल रही है; अत: यहाँ द्रव्य और पर्याय के अभेद की मुख्यता है|१०|| विगत गाथा में यह कहा है कि पर्याय के बिना पदार्थ नहीं होता और पदार्थ के बिना पर्याय नहीं होती। अब इस ११ वीं गाथा में यह कहा जा रहा है कि शुद्धोपयोगरूप पर्याय से परिणमित आत्मा मुक्ति प्राप्त करते हैं और शुभोपयोगरूप पर्याय से परिणमित आत्मा स्वर्गादि को प्राप्त करते हैं। तात्पर्य यह है कि यहाँ चारित्र परिणाम के साथ रहनेवाले ग्रहण करने योग्य शुद्धपरिणाम और त्याग करने योग्य शुभ परिणामों का फल बताया जा रहा है। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है - (हरिगीत) प्राप्त करते मोक्षसुख शुद्धोपयोगी आतमा ।
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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