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________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार सप्रदेशत्व, अप्रदेशत्व; मूर्तत्व, अमूर्तत्व; सक्रियत्व, अक्रियत्व; चेतनत्व, अचेतनत्व; कर्तृत्व, अकर्तृत्व; भोक्तृत्व, अभोक्तृत्व और अगुरुलघुत्व आदि सामान्य गुण हैं। अवगाहहेतुत्व, गतिनिमित्तता, स्थितिकारणत्व, वर्तनायतनत्व, रूपादिमत्व और चेतनत्व आदि विशेष गुण हैं। ____ आयतविशेष को पर्याय कहते हैं। चार प्रकार की पर्यायों का प्रतिपादन विगत गाथाओं में हो चुका है। द्रव्य का उत्पादादि और गुण-पर्यायों से लक्ष्य-लक्षणभेदहोने पर भी स्वभाव___ यथा खलूत्तरीयमुपात्तमलिनावस्थं प्रक्षालितममलावस्थयोत्पद्यमानं तेनोत्पादेन लक्ष्यते। न च तेन सह स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते । तथा द्रव्यमपि समुपात्तप्राक्तनावस्थं समुचितबहिरङ्गसाधनसन्निधिसद्भावे विचित्रबहुतरावस्थानं स्वरूपकर्तृकरणसामर्थ्यस्वभावेनांतरङ्गसाधनतामुपागतेनानुग्रहीतमुत्तरावस्थयोत्पद्यमानं तेनोत्पादेन लक्ष्यते; न च तेन सह स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते। ___यथा च तदेवोत्तरीयममलावस्थयोत्पद्यमानं मलिनावस्थया व्ययमानं तेन व्ययेन लक्ष्यते; न च तेन सह स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते । तथा तदेव द्रव्यमप्युत्तरावस्थयोत्पद्यमानं प्राक्तनावस्थया व्ययमानतेन व्ययेन लक्ष्यते । न च तेन सह स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमवलम्बते। यथैव च तदेवोत्तरीयमेककालमलावस्थयोत्पद्यमानं मलिनावस्थया व्ययमानमवस्थायिन्योत्तरीयत्वावस्थया ध्रौव्यमालम्बनमानं ध्रौव्येण लक्ष्यते; न च तेन सह स्वरूपभेदमुपव्रजति, स्वरूपत एव तथाविधत्वमलम्बते; तथैव तदेव द्रव्यमप्येककालमत्तराववस्थयोभेद नहीं है, स्वरूप भेद नहीं है; क्योंकि वस्त्र के समान द्रव्य स्वभाव से ही उत्पादादि और गुण-पर्यायों से युक्त होता है। जिसप्रकार मलिन वस्त्र धोने पर निर्मल अवस्था से उत्पन्न होता हुआ उत्पाद से लक्षित होता है; किन्तु उसका उस उत्पाद के साथ स्वरूपभेद नहीं है, वह स्वरूप से ही वैसा है; उसीप्रकार पूर्वावस्थारूप परिणत जो द्रव्य उचित बहिरंग साधनों के सान्निध्य में अनेकप्रकार की अवस्थायें धारण करता है; वह अंतरंग साधनभूत स्वरूपकर्ता और स्वरूपकारण के सामर्थ्यरूप स्वभाव से उत्तर अवस्था से उत्पन्न होता हुआ उत्पाद से लक्षित होता है; किन्तु उसका उस उत्पाद के साथ स्वरूपभेद नहीं है, वह स्वरूप से ही वैसा है। जिसप्रकार वही वस्त्र निर्मल अवस्था से उत्पन्न और मलिन अवस्था से व्यय को प्राप्त होता हुआ उस व्यय से लक्षित होता है; किन्तु उसका उस व्यय के साथ स्वरूपभेद नहीं है, वह
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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