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________________ कहने की प्रतिज्ञा भी की गई है। द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार (गाथा ९३ से गाथा १२६ तक) अथ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापनं, तत्र पदार्थस्य सम्यग्द्रव्यगुणपर्यायस्वरूपमुपवर्णयति - अत्थो खलु दव्वमओ दव्वाणि गुणप्पगाणि भणिदाणि। तेहिं पुणो पजाया पज्जयमूढा हि परसमया।९३शा एक बात विशेष ध्यान देने योग्य यह भी है कि इसमें अरहंत और सिद्धों को नमस्कार न करके; उन्हीं मुनिराजों को नमस्कार किया गया है, जिनको प्रथम महाधिकार की तात्पर्यवृत्ति टीका में समागत अन्तिम दो गाथाओं में किया गया है। इस गाथा की संगति उन गाथाओं से ही बैठती है। तम्हा तस्स णमाई - इसलिए उनको नमस्कार करके - इस कथन में पूर्वापर संबंध स्पष्ट हो ही जाता है। यद्यपि इस गाथा में ऐसा कोई शब्द नहीं मिलता; जिससे यह अनुभव किया जा सके कि आचार्य कुन्दकुन्द को इस अधिकार का नाम सम्यग्दर्शनाधिकार इष्ट था; तथापि आचार्य जयसेन ने तात्पर्यवृत्ति में परमार्थ का निश्चय करानेवाला अधिगम का अर्थ सम्यक्त्व किया है। लगता है इसी आधार पर उन्होंने इस महाधिकार का नाम सम्यग्दर्शन अधिकार रखा है। उन्हें स्वयं आशंका थी कि उक्त शब्दों का अर्थ सम्यग्दर्शन करने में कुछ लोगों को विकल्प हो सकता है; अत: उन्होंने टीका में स्वयं प्रश्न उठाकर उसका उत्तर दिया है। उसमें यह भी लिखा है कि इसका अर्थ सम्यग्दर्शन नहीं करना हो तो सम्यग्ज्ञान भी कर सकते हैं। उक्त सम्पूर्ण प्रकरण मूलत: पठनीय है। मंगलाचरण (दोहा) गुण-पर्यय उत्पाद-व्यय-ध्रुवमय अनुपम भाव | सब द्रव्यों का एक सा सत् सामान्य स्वभाव || यह ९३वीं गाथा ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार और द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार की पहली गाथा है; जिसमें पदार्थ द्रव्य-गुण-पर्यायरूप होता है - यह बताया गया है। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है - (हरिगीत) गुणात्मक हैं द्रव्य एवं अर्थ हैं सब द्रव्यमय।
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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