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________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार ( गाथा ९३ से गाथा २०० तक ) मंगलाचरण ( सोरठा ) सभी द्रव्य हैं ज्ञेय, आतम ज्ञायक- ज्ञेय है । निज आतम श्रद्धेय, निज आतम ही ध्येय है । यह तो आपको विदित ही है कि इस अधिकार का ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार - यह नाम आचार्य अमृतचन्द्र ने दिया है; जो तत्त्वप्रदीपिका टीका में उपलब्ध होता है। इसी अधिकार को आचार्य जयसेनकृत तात्पर्यवृत्ति टीका में सम्यग्दर्शन महाधिकार नाम से संबोधित किया गया है। यह भी पहले बताया जा चुका है कि आचार्य कुन्दकुन्द ने प्रवचनसार को अधिकारों में विभक्त नहीं किया है। वे तो एकसाथ एक ही क्रम से सम्पूर्ण प्रवचनसार लिखते गये हैं । उक्त वर्गीकरण टीकाकार आचार्यों द्वारा ही किये गये हैं । आत्मा के कल्याण के लिए जगत में जो भी जानने योग्य पदार्थ हैं; उन सभी पदार्थों का वर्णन इस ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार में होगा । पहले सभी द्रव्यों की सामान्य चर्चा करेंगे; उसके बाद षट्द्रव्यों को अनेक युगलों में विभक्त कर प्रस्तुत करेंगे तथा प्रत्येक द्रव्य की अलग-अलग विशेष चर्चा करेंगे। तत्पश्चात् ज्ञान और ज्ञेयों की भिन्नता का स्वरूप स्पष्ट करेंगे । इसप्रकार यह ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार तीन अधिकारों में विभक्त है; जो इसप्रकार हैं१. द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार, २. द्रव्यविशेषप्रज्ञापन अधिकार और ३. ज्ञानज्ञेय - विभागाधिकार | द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार प्रवचनसार का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंश है; क्योंकि इसमें प्रतिपादित वस्तुस्वरूप जबतक हमारे ख्याल में नहीं आएगा, तबतक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति संभव नहीं है; क्योंकि सम्यग्दर्शन का विषयभूत जो भगवान आत्मा है और जिसकी चर्चा समयसार में की जाती है; वह भगवान आत्मा इस प्रवचनसार के द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन की पृष्ठभूमि पर ही समझा जा सकता है। इसीप्रकार द्रव्यविशेषाधिकार में प्रत्येक द्रव्य का स्वरूप स्पष्ट करने के साथ-साथ छह द्रव्यों को अनेक युगलों में विभक्त कर भेदविज्ञान की पृष्ठभूमि तैयार की जावेगी।
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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