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________________ ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन चारित्रं खलु धर्मो धर्मो यस्तत्साम्यमिति निर्दिष्टम् । मोहक्षोभविहीन: परिणाम: आत्मनो हि साम्यम् ।।७।। स्वरूपे चरणं चारित्रं, स्वसमयप्रवृत्तिरित्यर्थः । तदेव वस्तुस्वभावत्वाद्धर्मः । शुद्धचैतन्यप्रकाशनमित्यर्थः । तदेव च यथावस्थितात्मगुणत्वात्साम्यम् । साम्यं तु दर्शनचारित्रमोहनीयोदयापादितसमस्तमोहक्षोभाभावादत्यन्तनिर्विकारोजीवस्य परिणामः ।।७।। अथात्मनश्चारित्रत्वं निश्चिनोति - परिणमदि जेण दव्वं तक्कालं तम्मयं त्ति पण्णत्तं । तम्हा धम्मपरिणदो आदा धम्मो मुणेयव्वो।।८।। वस्तुत: चारित्र हीधर्म है। वह धर्म साम्यभावरूप है- ऐसा कहा गया है। मोह (दर्शनमोह) और क्षोभ (चारित्रमोह - राग-द्वेष) से रहित आत्मा का परिणाम ही साम्यभाव है। उक्त गाथा का भाव तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - "स्वरूप में चरण करना (रमना) चारित्र है। इसका अर्थ (तात्पर्य) स्वसमय में प्रवृत्ति करना है। वस्तु का स्वभाव होने से यही धर्म है और शुद्धचैतन्य का प्रकाशन होना - इसका अर्थ है। यही यथावस्थित आत्मगुण होने से साम्य है। वह साम्य दर्शनमोहनीय तथा चारित्रमोहनीय के उदय से उत्पन्न होनेवाले समस्त मोह (दर्शनमोह-मिथ्यात्व) और क्षोभ (चारित्रमोह - राग-द्वेष) के अभाव के कारण अत्यन्त निर्विकारी - ऐसा जीव का परिणाम है।" उक्त कथन में ध्यान देने की बात यह है कि चाहे सराग चारित्र हो चाहे वीतराग चारित्र, पर होगा तो वह नियम से जीव का परिणाम ही; वह देह की क्रियारूप नहीं हो सकता, वह जड़ की क्रियारूप नहीं हो सकता। हमें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि हम जिस देह की क्रिया को चारित्र मान रहे हैं; क्या वह जीव का परिणाम है? यदि वह देह की क्रिया जीव का परिणाम नहीं है तो वह न तो सरागचारित्र होगी और न वीतराग चारित्र; क्योंकि सम्यग्दर्शन-ज्ञान सहित वीतरागी परिणाम को वीतराग चारित्र कहते हैं और सम्यग्दर्शन-ज्ञान सहित शुभभाव को सरागचारित्र कहते हैं।|७|| विगत गाथा में यह कहा गया था कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान सहित वीतरागभाव ही चारित्र है और अब इस आठवीं गाथा में यह स्पष्ट करते हैं कि आत्मा जिस समय जिस भावरूप से परिणमित होता है; उस समय उसी भावमय होता है। अत: धर्मभाव से परिणमित आत्मा ही
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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