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________________ ज्ञानतत्त्वप्रज्ञापन समस्तैकान्तवादाविद्याभिनिवेश: पारमेश्वरीमनेकान्तवादविद्यामुपगम्य मुक्तसमस्तपक्षपरिग्रहतयात्यन्तमध्यस्थो भूत्वा सकलपुरुषार्थसारतया नितान्तमात्मनो हिततमां भगवत्पंचपरमेष्ठिप्रसादोपजन्यां परमार्थसत्यां मोक्षलक्ष्मीमक्षयामुपादेयत्वेन निश्चिन्वन् प्रवर्तमानतीर्थनायकपुरःसरान् भगवत: पंचपरमेष्ठिन: प्रणमनवन्दनोपजनितनमस्करणेन संभाव्य सर्वारम्भेण मोक्षमार्ग संप्रतिपद्यमानः प्रतिजानीते। अथ सूत्रावतार: एस सुरासुरमणुसिंदवंदिदं धोदघाइकम्ममलं । पणमामि वड्ढमाणं तित्थं धम्मस्स कत्तारं ।।१।। सेसे पुण तित्थयरे ससव्वसिद्धे विसुद्धसब्भावे । समणे य णाणदंसणचरित्ततववीरियायारे ।।२।। ऐसे कोई (आचार्य कुन्दकुन्ददेव) पारमेश्वरी अनेकान्त विद्या को प्राप्त करके, समस्त पक्षों का परिग्रह त्याग देने से अत्यन्त मध्यस्थ होकर; समस्त पुरुषार्थों में सारभूत होने से आत्मा के लिए अत्यन्त हिततम, पंचपरमेष्ठियों के प्रसाद से उत्पन्न होनेयोग्य, परमार्थसत्य, अक्षय मोक्षलक्ष्मीको उपादेयरूपसे निश्चित करते हुए प्रवर्तमान तीर्थ के नायक श्रीवर्द्धमानसहित पंचपरमेष्ठियों को प्रणाम और वंदन से होनेवाले नमस्कार के द्वारा सम्मान करके; सर्वारंभ से मोक्षमार्ग का आश्रय करते हए प्रतिज्ञा करते हैं।" ___ इस उत्थानिका में यह कहा गया है कि आसन्नभव्य, परमविवेकी, अनेकान्तवादी, अपरिग्रही और अनाग्रही आचार्य कुन्दकुन्ददेव अत्यन्त मध्यस्थ होकर परम हितकारी अक्षय मोक्षलक्ष्मी को उपादेय मानते हुए वर्तमान तीर्थ के नायक होने से सबसे पहले महावीर स्वामी को नमस्कार करके पंच परमेष्ठियों को नमस्कार करते हुए पूरी शक्ति से मोक्षमार्ग का आश्रय लेते हुए प्रतिज्ञा करते हैं। अब गाथा सूत्रों का अवतरण होता है; जिनका पद्यानुवाद इसप्रकार है - ( हरिगीत) सुर असुर इन्द्र नरेन्द्र वंदित कर्ममल निर्मलकरन । वृषतीर्थ के करतार श्री वर्द्धमान जिन शत-शत नमन ||१|| अवशेष तीर्थंकर तथा सब सिद्धगण को कर नमन | मैं भक्तिपूर्वक नमूं पंचाचारयुत सब श्रमणजन ||२||
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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