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________________ पर से कुछ भी संबंध नहीं योग्यता होती है, वह द्रव्य या वह गुण उसी समय कार्यरूप परिणमित होता है। चूंकि कार्य का दूसरा नाम पर्याय अर्थात् काल भी है, यहीकारण है कि काल के नियामक तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादान को कार्य का नियामक कारण भी कहा जाता है। इसप्रकार यह सुनिश्चित हुआ कि स्वभाव का नियामक निकाली उपादान, विधि (पुरुषार्थ ) का नियामक अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय से युक्त द्रव्यरूप क्षणिक उपादान और काल का या कार्य का नियामक तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादान रहा। प्रश्न २०: ध्रुव उपादान को वस्तुतः समर्थ कारण क्यों नहीं माना गया? उत्तर : ध्रुव उपादान को कार्य का समर्थ कारण इसकारण नहीं माना जा सकता है कि उनके रहते हुए भी कार्य सम्पन्न नहीं होता। यदि ध्रुव उपादान को समर्थ कारण मानेंगे तो कारण के रहते कार्य सदैव होते रहने का प्रसंग प्राप्त होगा। समर्थ कारण कहते ही उसे हैं, जिसके होने पर कार्य नियम से होवे ही होवे और जिसके बिना कार्य होवे ही नहीं। प्रश्न २१ : जब यह त्रिकाली उपादान समर्थ कारण नहीं है तो इसको कारण कहा ही क्यों ? उत्तर : यद्यपि त्रिकाली उपादान समर्थकारण नहीं है, परन्तु यह स्वभाव का नियामक है। जब भी कार्य होगा, तब इसी ध्रुव या त्रिकाली उपादान में से ही होगा। अन्य किसी द्रव्य में से नहीं होगा। इस अपेक्षा त्रिकाली द्रव्य को द्रव्यार्थिकनय से कार्य का नियामक कारण कहा है। यह नय सम्पूर्ण द्रव्य को ग्रहण करता है। प्रश्न २२: ऐसा कारण मानने से क्या लाभ है ? उत्तर : ध्रुव उपादान को कारण मानने से लाभ यह है कि - साधक निमित्तोपादान कारण : स्वरूप एवं भेद-प्रभेद २३ की दृष्टि अन्य अनन्त द्रव्यों पर से हटकर एक अपने त्रिकाली ध्रुव उपादान कारण का ही आश्रय करने लगती है। इसी अपेक्षा इसे आश्रयभूत कारण भी कहा जाता है। रत्नत्रयस्वरूप कार्य प्रगट करने की भावना वाला व्यक्ति अन्य अनेक व्यवहार के विकल्पों में उलझे उपयोग को वहाँ से हटाकर अपने त्रिकाली आत्मद्रव्य का ही आश्रय लेने लगता है। यह प्रयोजन देखकर ही त्रिकाली उपादान कारण को उपचार से कारण कहा है। प्रश्न २३ : आगम में अनन्तर पूर्वक्षणवर्ती पर्याययुक्त द्रव्य के व्यय को कारण और अनन्तर उत्तरक्षणवर्ती पर्याययुक्त द्रव्य के उत्पाद को कार्य कहा गया है। ___ जब यहाँ एक ही वस्तु (पर्याय ) को नास्ति से पूर्व पर्याय का व्यय और अस्ति से उत्तर पर्याय का उत्पाद कहा जा रहा है तो यहाँ व्यय को उत्पाद का कारण कहने का क्या हेतु है ? जब ये दोनों एक ही पर्याय के नामान्तर हैं अथवा एक ही पर्याय के अंश हैं, इनमें कालभेद व पर्याय भेद है ही नहीं तो इनमें कारण-कार्य विवक्षा कैसे संभव है? उत्तर : पूर्व पर्याय का व्यय ही नवीन पर्याय का उत्पाद है अर्थात् पूर्वपर्याय के व्ययपूर्वक ही नवीन उत्पाद होता है। व्यय के बिना उत्पाद नहीं होता। यह विधि या पुरुषार्थ का नियामक है। जब भी कार्य होगा तो इस विधि पूर्वक ही होगा - ऐसा नियम बताने के लिए पूर्व पर्याय के व्यय को कारण कहा जाता . यद्यपि उत्तर पर्याय का उत्पाद ही पूर्व पर्याय का व्यय है, इनमें वस्तुभेद व कालभेद नहीं है; तथापि आगम में ऐसी कथन पद्धति है कि - नास्ति से व्यय को अभावरूप कारण व अस्ति से उत्पाद को कार्य कहा
SR No.008365
Book TitlePar se Kuch bhi Sambandh Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size235 KB
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