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________________ पर से कुछ भी संबंध नहीं उत्तर : जो द्रव्य या गुण स्वयं कार्यरूप परिणमित हो, उसे त्रिकाली उपादान कारण कहते हैं। पदार्थ की निज सहजशक्ति या मूलस्वभाव ध्रुव या त्रिकाली उपादान है। जिस पदार्थ में कार्य निष्पन्न होता है, वह त्रिकाली या ध्रुव उपादान कारण कहलाता है। ध्रुव उपादान कारण स्वयं कार्यरूप परिणमित होता है। जैसे मिट्टी स्वयं घटरूप परिणमित होती है। अतः घट कार्य का ध्रुव उपादान रूप नियामक कारण मिट्टी है। इसीप्रकार आत्मा अथवा श्रद्धा, ज्ञान एवं चारित्र गुण स्वयं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र रूप परिणमता है। अत: आत्मा की इन पर्यायों या कार्यों का ध्रुव त्रिकाली उपादान रूप नियामक कारण आत्मा या श्रद्धा ज्ञान चारित्रगुण है। तात्कालिक या क्षणिक उपादान कारणों में जो अनन्तरपूर्वक्षणवर्तीपर्याय युक्त द्रव्य का व्यय प्रथम क्षणिक उपादान कारण है, उस कारण का अभाव करते हुए कार्य उत्पन्न होता है। अत: इस कारण को अभावरूप नियामक कारण कहते हैं तथा कार्य होने की योग्यता रूप दूसरा क्षणिक उपादान कारण है, वही पर्याय 'योग्यता' की अपेक्षा कारण एवं वही पर्याय 'परिणमन' की अपेक्षा कार्य कही जाती है। वस्तुतः जो वह पर्याय की तत्समय की योग्यता ही कार्य का नियामक और समर्थ कारण है। परन्तु तीनों ही उपादान कारणों को भी भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से नियामक कारण कहा गया है। उदाहरणार्थ : सम्यग्दर्शन रूप कार्य के कारण इसप्रकार हैं - त्रिकाली उपादान कारण - जीवद्रव्य या श्रद्धागुण क्षणिक उपादान कारण नं. १ - अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय का व्यय अर्थात् मिथ्यादर्शन का व्यय । क्षणिक उपादान कारण नं.२ - तत्समय की योग्यता अर्थात् सम्यग्दर्शन निमित्तोपादान कारण : स्वरूप एवं भेव-प्रभेद प्रगट होने का उत्पाद। माना कि - दस नं.की पर्याय (सम्यग्दर्शन) जीवद्रव्य या श्रद्धागुण का कार्य है, जो कि उसके पूर्व की नौ नं. की पर्याय (मिथ्यादर्शन) का अभाव करके हुई है। ये नौ एवं दस नं. की दोनों पर्यायें भिन्न-भिन्न हैं, स्वतंत्र हैं। इनमें काल भेद है। अतः इनमें तो कारण-कार्य संबंध बन नहीं सकता; परन्तु नौ नं. की मिथ्यात्व पर्याय का व्यय एव दस नम्बर की समकित पर्याय के उत्पाद का समकाल है एवं समभाव है। वस्तुतः ये दोनों दो हैं ही नहीं, एक ही हैं। इन्हीं में तत्समय कार्यरूप परिणमन की योग्यता कारण एवं परिणमन कार्य है। ध्यान दें, क्षणिक उपादान नं. की अनन्त समय में ही अर्थात् समकाल में ही सम्यग्दर्शन की योग्यता का प्रगट होना नियामक और समर्थकारण एवं उसी क्षण प्रगट हुई सम्यग्दर्शन की पर्याय कार्य है। प्रश्न १९ : क्या नियामक कारण भी अनेक प्रकार के हो सकते हैं ? उत्तर : क्यों नहीं ? अवश्य हो सकते हैं। प्रत्येक कार्य (पर्याय) का त्रिकाली उपादान इस बात का नियामक है कि यह कार्य (पर्याय) अमुक द्रव्य या उसके अमुक गुण में ही होगा, अन्य द्रव्य में नहीं और उसी द्रव्य के अन्य गुण में भी नहीं। सम्यग्दर्शनरूप कार्य आत्मद्रव्य और उसके श्रद्धागुण में ही सम्पन्न होगा, पुद्गलादि द्रव्यों या आत्मा के ज्ञानादि गुणों में नहीं। अनन्तरपूर्वक्षणवर्तीपर्याय से युक्त द्रव्य का व्ययरूप क्षणिक उपादान विधि (पुरुषार्थ) का नियामक है। इस उपादान कारण से यह सुनिश्चित होता है कि यह कार्य इस विधि से, इस प्रक्रिया से ही सम्पन्न होता है, अन्य प्रकार से नहीं। तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादान काल का नियामक है। जिस द्रव्य या गुण में जिस समय जिस कार्यरूप परिणमित होने की पर्यायगत
SR No.008365
Book TitlePar se Kuch bhi Sambandh Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size235 KB
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