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________________ ५८ पदार्थ विज्ञान होगी, अथवा तो क्षणिक को ही नित्यत्व आ जायेगा । वहाँ (१) यदि मृत्तिका की स्थिति न हो तो समस्त ही भावों की स्थिति नहीं होगी (अर्थात् यदि मिट्टी ध्रुव न रहे तो मिट्टी की ही भाँति विश्व का कोई भी द्रव्य ध्रुव ही नहीं रहेगा, टिकेगा ही नहीं यह दोष आयेगा ।) अथवा (२) यदि क्षणिक का नित्यत्व हो तो चित्त के क्षणिक भावों का भी नित्यत्व होगा, (अर्थात् मन का प्रत्येक विकल्प भी त्रैकालिक ध्रुव हो जाय - यह दोष आयेगा ।) इसलिये द्रव्य को उत्तर-उत्तर व्यतिरेकों के सर्ग ( उत्पाद) के साथ, पूर्व पूर्व के व्यतिरेकों के संहार के साथ और अन्वय के अवस्थान (ध्रौव्य) के साथ त्रिलक्षणतारूपलांछन प्रकाशमान है - ऐसा समझना । गाथा १०० पर प्रवचन वस्तु में उत्पाद - व्यय और ध्रुव ये तीनों एक साथ ही होते हैं, यदि ऐसा न माना जाये और उत्पाद-व्यय-ध्रुव इन तीनों को एक-दूसरे के बिना भिन्न-भिन्न ही माना जाये तो उसमें जो दोष आते हैं, वे इसप्रकार हैं यदि व्यय और ध्रुव के बिना मात्र उत्पाद ही माना जाये तो, एक तो उत्पादन कारण के बिना उत्पाद ही सिद्ध नहीं होगा, अथवा असत् का ही उत्पाद होगा । मिथ्यात्व का व्यय सम्यक्त्व के उत्पाद का कारण है और आत्मा की ध्रुवता के आधार से सम्यक्त्व का उत्पाद होता है । आत्मा को ध्रुवता के आधार बिना और मिथ्यात्व के व्यय बिना मात्र सम्यक्त्व के उत्पाद को ही ढूँढें तो वह नहीं मिलेगा। ध्रुव के आधार के बिना उत्पाद किसमें होगा? और मिथ्यात्व पर्याय का अभाव हुए बिना सम्यक्त्व पर्याय का उत्पाद कहाँ से होगा? नवीन पर्याय उत्पन्न होने का कारण पुरानी पर्याय का व्यय है, और नवीन पर्याय उत्पन्न होने का आधार "ध्रुव" है । ध्रुव के आधार के बिना ही यदि उत्पाद हो तब तो असत् का उत्पाद हो । यदि मिथ्यात्व का व्यय न हो तो सम्यक्त्व का उत्पाद ही न हो। तथा आत्मा की ध्रुवता बिना ही यदि कोई सम्यक्त्व का 34 प्रवचनसार-गाथा १०० के उत्पाद माने तो उसे असत् की उत्पत्ति होने का प्रसंग आयेगा । जिसप्रकार मिट्टी के पिण्ड के अभाव बिना और मिट्टी की ध्रुवता बिना घड़े का उत्पाद नहीं हो सकता, उसीप्रकार आत्मा में वस्तु की ध्रुवता और अधर्म के नाश के बिना धर्म का उत्पाद नहीं हो सकता । ध्रुव त्रिकाली द्रव्य के अवलम्बन बिना धर्म की उत्पत्ति नहीं होती। यदि ध्रुव के आधार बिना ही उत्पत्ति हो तो असत् की उत्पत्ति होगी । देखो, सुख चाहिए है न? तो वह सुख कहाँ ढूँढना ? सुख का आधार ध्रुव आत्मा है, और सुख का कारण दुःख का नाश है - उसमें सुख ढूँढें तो सुख मिलेगा। घर या शरीर - स्त्री - सम्पत्ति के आधार से सुख नहीं मिलेगा, किन्तु आत्मा के ध्रुवता के आधार से और आकुलता के अभाव में सुख की प्राप्ति होगी। ध्रुवता सुख के उत्पाद का आधार है और आकुलता का व्यय सुख की उत्पत्ति का कारण है। इन दोनों को न माने तो सुख की उत्पत्ति हो । पर के आश्रय के व्यय से और अपनी ध्रुवता के आश्रय से सुख का उत्पाद होता है। इसलिए सुख के लिये ध्रुव की ही रुचि करना आवश्यक है। ५९ यहाँ जो कई उदाहरण दिये गये, तदनुसार समस्त द्रव्यों में प्रतिसमय जो उत्पाद होता है वह ध्रुव और व्यय के बिना नहीं होता- ऐसा समझना । भाई! यदि तुझे शांति प्रगट करना हो तो तू अपने ध्रुव तत्त्व में ढूँढ । ध्रुवतत्त्व के आधार से ही शान्ति की उत्पत्ति होगी। अशान्ति का अभाव शान्ति की उत्पत्ति का कारण कहा है, किन्तु उस अशान्ति का अभाव और शान्ति की उत्पत्ति ध्रुवतत्त्व की दृष्टि करने से होती है । इसप्रकार शान्ति के लिए भी ध्रुवस्वभाव की दृष्टि करना आवश्यक है। आत्मा और जड़ प्रत्येक पदार्थ में प्रतिसमय उत्पाद - व्यय - ध्रुव हो रहे हैं। यदि वे उत्पाद-व्यय-ध्रुव स्वतंत्र न हों और दूसरे के कारण से हों तो वह पदार्थ ही स्वयंसिद्ध न रहे। प्रत्येक पदार्थ के उत्पाद-व्यय-ध्रुव अपने ही आधीन हैं, एक समय में ही उत्पाद-व्यय-ध्रुव - तीनों का होना
SR No.008362
Book TitlePadartha Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size148 KB
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