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________________ २४ प्रवचनसार-गाथा ९९ पदार्थ विज्ञान जगत् के सम्पूर्ण तत्त्व सत् हैं, उनकी पहली पर्याय के कारण भी दूसरी पर्याय नहीं होती, तब फिर तू उसमें क्या करेगा? तू तो मात्र ज्ञाता रहा। इसके अतिरिक्त दूसरा कुछ मानेगा तो, वस्तु में तो कुछ भी फेरफार नहीं होगा, किन्तु तेरा ज्ञान ही मिथ्या साबित होगा। __ वस्तु का वर्तमान अंश सत् है। यहाँ तो प्रत्येक समय के वर्तमान परिणाम को सत् सिद्ध किया है। द्रव्य के आधार से अंश है - यह बात इस समय नहीं लेना है। यदि द्रव्य के कारण परिणाम का सत्पना हो, तब तो सभी परिणाम एक समान ही हों, इसलिये द्रव्य के कारण परिणाम का सत्पना न लेकर प्रत्येक समय का परिणाम स्वयं सत् है और द्रव्य ही उस वर्तमान परिणामरूप से वर्तता हुआ सत् है - ऐसा लिया है। प्रवाह का वर्तमान अंश उसी अंश के कारण स्वतंत्र सत् है। इसप्रकार प्रत्येक समय का अकारणीय सत् सिद्ध किया है। समय-समय का सत् अहेतुक है। समस्त पदार्थों के तीनों काल के प्रत्येक समय का प्रत्येक अंश निरपेक्ष सत् है। ज्ञान उसे जैसे का तैसा यथावत् जानता है, किन्तु बदलता नहीं है। ज्ञान से जाना इसलिये वह अंश वैसा है - ऐसी बात नहीं है। वह स्वयं सत् है। __ वर्तमान परिणाम पूर्व-परिणाम के व्ययरूप है, इसलिये वर्तमान परिणाम को पूर्व-परिणाम की भी अपेक्षा नहीं रही, तब फिर परपदार्थ के कारण उसमें कुछ हो - यह बात कहाँ रही? केवली भगवान को पहले समय केवलज्ञान हुआ, इसलिये दूसरे समय वह केवलज्ञान रहा - ऐसा नहीं है, किन्तु दूसरे समय के उस वर्तमान परिणाम का केवलज्ञान उस समय के अंश से ही सत् है। पहले समय के सत् के कारण दूसरे समय का सत् नहीं है । इसीप्रकार सिद्ध भगवान को पहले समय में सिद्ध-पर्याय थी, इसलिये दूसरे समय में भी सिद्धपर्याय हुईं - ऐसा भी नहीं है। सिद्धों में और समस्त द्रव्यों में प्रत्येक समय का अपना-अपना अंश स्वतंत्र सत् स्वरूप है। ___ यहाँ एक अंश के परिणाम के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य में अपने अवसर में' - ऐसी भाषा का उपयोग नहीं किया, क्योंकि वर्तमान में प्रवर्तित एक परिणाम की बात है और वर्तमान में जो परिणाम वर्तता है, वही उसका स्वकाल है। तीनों काल के प्रत्येक परिणाम का जो वर्तमान है वह वर्तमान ही उसका स्वकाल है। अपने वर्तमान को छोड़कर वह आगे-पीछे नहीं होता। इसप्रकार वर्तमान प्रत्येक परिणाम का उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य स्वभाव है। इस गाथा में अभी तक चार बोल आये : (१) द्रव्य का अखण्ड प्रवाह एक है और उसके क्रमशः होनेवाले अंश परिणाम हैं। (२) उन परिणामों में अनेकता है, क्योंकि उनमें परस्पर व्यतिरेक है। (३) तीनों काल के परिणामों का पूरा दल लेकर समस्त परिणामों में सामान्यरूप से उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यपना कहा है। (४) सम्पूर्ण प्रवाह का एक अंश लेकर प्रत्येक परिणाम में उत्पादव्यय-ध्रौव्य कहे। इसप्रकार परिणाम का उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यपना निश्चित करके अब परिणामी (द्रव्य) में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य सिद्ध करते हैं। "इसप्रकार स्वभाव से ही विलक्षण परिणाम-पद्धति में (परिणामों की परम्परा में) प्रवर्तमान द्रव्य-स्वभाव का अतिक्रमण न करने से सत्त्व को त्रिलक्षण ही अनुमोदना। द्रव्य के समस्त परिणाम उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य स्वरूप है और उन परिणामों के क्रम में प्रवर्तमान द्रव्य भी उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त ही है।
SR No.008362
Book TitlePadartha Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size148 KB
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