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________________ नींव का पत्थर धर्म, सिख धर्म, इस्लाम धर्म, हिन्दू धर्म आदि। वस्तुतः अनादिनिधन सनातन धर्म तो वस्तुओं का स्वभाव है। इसी संदर्भ में अनन्तधर्मात्मक वस्तु को अनेकान्त कहते हैं। यह अनेकान्त वस्तु का धर्म है। जिस वस्तु में अनन्त धर्म पाये जायें, वह वस्तु अनेकान्तस्वरूप है, अनन्तधर्मात्मक है, इस वस्तुधर्म के परस्पर विरोधी जोड़े होते हैं। जैसे नित्य-अनित्य, एक-अनेक, भिन्न-अभिन्न, सत्-असत्, तत्-अतत्, भाव-अभाव आदि । जिसप्रकार स्व की अपेक्षा से सद्भाव धर्म है, उसीप्रकार पर की अपेक्षा से अभाव भी पदार्थ का सद्भावरूप धर्म है। इस अभाव धर्म के सद्भाव के कारण ही सब वस्तुएँ अपने-अपने अस्तित्व में जुदी-जुदी रहती हैं। यदि यह अभावधर्म न होता तो सब वस्तुएँ मिलकर एकमेक हो जातीं, सर्व वस्तुएँ सर्वात्मक हो जाती। ___ 'अभाव' की परिभाषा करते हुए आचार्य ने बताया है कि - "किसी एक पदार्थ का अन्य पदार्थों में न होना ‘अभाव' है। यद्यपि यह 'अभाव' नामक वस्तुधर्म छहों द्रव्यों में सद्भावरूप से ही विद्यमान है, परन्तु परद्रव्य की अपेक्षा से देखें तो स्व-वस्तु परवस्तु नहीं है। इसप्रकार एक द्रव्य का अस्तित्व दूसरे द्रव्य में न होना ही अभाव है। प्रत्येक द्रव्य में एक ऐसी 'अभावशक्ति' का सद्भाव है कि जिसकी वजह से परद्रव्य का उसमें प्रवेश नहीं होता। ये अभाव चार प्रकार के होते हैं - १. प्राक् अभाव, २. प्रध्वंश अभाव, ३. अन्योन्य अभाव और ४. अत्यन्त अभाव। प्रथम दो अभावों की परिभाषायें इसप्रकार हैं - उत्पत्ति से पूर्व कारण में कार्य का अभाव प्राक् अभाव या प्रागभाव है अर्थात् पूर्व पर्याय में वर्तमान पर्याय का अभाव प्रागभाव है। इसीप्रकार वर्तमान पर्याय का आगामी पर्याय में अभाव प्रध्वंसाभाव है। उदाहरणार्थ हम भगवान महावीर स्वामी की तीन पर्यायें पकड़ें - १. मारीचिरूप भूतकाल की पर्याय २. सिंह की वर्तमान पर्याय और ३. भविष्य की महावीर पर्याय । इनके बीच में हुई पर्यायों को बिलकुल कुछ अनछुए पहलू गौण कर दें, फिर देखें कि वर्तमान सिंह पर्याय का भूतकाल में हुई मारीचि पर्याय में जो अभाव है, वह प्रागभाव है। इसीप्रकार - सिंह की पर्याय का महावीर की पर्याय में अभाव प्रध्वंसाभाव है। दूसरा उदाहरण : दही (वर्तमान पर्याय) दूध (भूतकाल की पूर्व पर्याय) तथा छांछ (भविष्य की पर्याय) को देखें। दही वर्तमान पर्याय का पूर्व दूध की पर्याय में अभाव प्रागभाव है। उसी दही पर्याय का आगामी छांछ की पर्याय में अभाव प्रध्वंसाभाव है। आत्मा पर घटायें तो आत्मा के जो छहढाला में तीन भेद हैं - १. बहिरात्मा, २. अन्तरात्मा और ३. परमात्मा। अन्तरात्मा वर्तमान पर्याय का पूर्व पर्याय बहिरात्मा में अभाव प्रागभाव और आगामी परमात्मा पर्याय में अन्तरात्मा का अभाव प्रध्वंसाभाव है। प्रथम तीन अभाव - प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव एवं अन्योन्याभाव वस्तु के पर्याय स्वभाव पर लागू होते हैं और वे पर्याय की स्वतंत्रता को प्रगट करते हैं। अन्तिम अत्यन्ताभाव दो भिन्न-भिन्न द्रव्यों पर लागू होता है एवं द्रव्यों की स्वतंत्रता को बताता है। प्रागभाव बताता है कि एकसमयवर्ती वर्तमान पर्याय का सद्भाव या अस्तित्व मात्र वर्तमान समय में ही है। उसी द्रव्य की निकटवर्ती भूत व भावी पर्यायों में उसकी उपस्थिति न होने से उसके द्वारा उनका कुछ भी भला-बुरा करने एवं सहायरूप होने आदि में कुछ भी योगदान संभव नहीं है। अत: वर्तमान पर्याय न तो अपनी द्रव्य का ही भूत व भावी एकक्षणवर्ती पर्यायों में कुछ परिवर्तन या हस्तक्षेप कर सकती है और न वे एक ही द्रव्य की भूत व भावी पर्यायें वर्तमान पर्याय में हस्तक्षेप या सहयोग कर सकती हैं। अतः प्रत्येक द्रव्य की एकसमयवर्ती पर्याय पूर्ण स्वतंत्र है, इसप्रकार प्रागभाव व प्रध्वंसाभाव वर्तमान पर्याय की स्वतंत्रता बताकर वस्तुस्वातंत्र्य के सिद्धान्त का पोषण करते हैं। तथा तीसरा - अन्योन्याभाव केवल पुद्गल द्रव्य की दो वर्तमान पर्यायों पर लागू होता है। एक पुद्गलद्रव्य की वर्तमान पर्याय का दूसरे पुद्गल द्रव्य की वर्तमान पर्याय में अभाव को
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
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