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________________ ol ( कुण्डलिया ) तत्त्वज्ञान कुनैन बिन, आस्रव ज्वर नहिं जाय। हो मिठास हरिवंश की, तत्त्व सहज रुच जाय ।। तत्त्व सहज रुच जाय, यह ही एक उपाय है। ज्वर अज्ञान असाध्य, समकित कुनैन से जाय है। वस्तुस्वरूप विवेक बिन, रहे सदा बैचेन । औषधि यही अमोघ है, तत्त्वज्ञान कुनैन ।। आजकल ग्रन्थ में आये महत्त्वपूर्ण विषयों की सूची ग्रन्थ के प्रारंभ में ही पृथक् से प्रकाशित करने की प्रथा है; उसी की पूर्ति आचार्य जिनसेन ने हरिवंश पुराण के प्रथम सर्ग में श्लोकों के माध्यम से की है। पाठक हरिवंश पुराण के प्रथम सर्ग का सार पढ़कर सम्पूर्ण ग्रन्थ में कहाँ-क्या कथन आया है ? यह जान सकते हैं। मूल ग्रन्थ में आये विषय मूलत: निम्नांकित आठ अधिकारों में हैं - १. लोक वर्णन, २. राजवंशों की उत्पत्ति, ३. हरिवंश अवतार, ४. वसुदेव की चेष्टाओं का कथन, ५. नेमिनाथ का चरित्र, ६. द्वारिका का निर्माण, ७. युद्ध का वर्णन और ८. निर्वाण । ये सभी अधिकार अपने अवान्तर अधिकारों से अलंकृत है। दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ के समय हरिवंश की उत्पत्ति और उसी हरिवंश में आगे २०वें तीर्थंकर | . 4 4
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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