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________________ श्रीकृ ष्ण py R_F OF उन सभी ने भी संसार से विरक्त हो जिनदीक्षा धारण कर ली। एक समय गजकुमार मुनि रात्रि में एकान्त में प्रतिमा योग से विराजमान होकर ध्यान कर रहे थे। उससमय उनके श्वसुर सोमशर्मा को इस बात से क्रोध आया कि उसकी बेटी को निराश्रय छोड़कर गजकुमार मुनि क्यों हो गया ? यदि उसे मुनि होना ही था तो शादी ही क्यों की? उस बिचारे मोही प्राणी को क्या पता कि वैराग्य क्या वस्तु है ? और कब, कैसे हो जाता है ? वह तो अपनी पुत्री के मोह में पागल सा हो गया था। अत: विवेक शून्य होकर उसने अपने सगे जमाई और आत्मसाधना में लीन मुनिराज के मस्तक पर धधकती हुई अंगारों से भरी आग की सिगड़ी रख दी। मुनि गजकुमार उस आई आपत्ति को उपसर्ग मानकर स्थिर चित्त हो ध्यानस्थ रहे और उसी जलती हुई अवस्था में शुक्लध्यान द्वारा कर्मों का क्षय कर अन्तकृत्केवली हो मोक्ष चले गये। यक्ष, किन्नर, गन्धर्व और महोरम आदि सुर और असुरों ने उनकी पूजा की। गजकुमार मुनिराज के चिर-वियोग से सभी यादव बहुत दुःखी हुए। वसुदेव को छोड़कर शेष यादव समुद्रविजय आदि तो मुक्ति की भावना से दीक्षित हो ही गये। शिवा आदि देवियाँ तथा देवकी और रोहणी को छोड़कर वसुदेव की अन्य पत्नियों एवं पुत्रियों ने भी दीक्षा ले ली। भगवान तीर्थंकर नेमिजिनेन्द्र भव्य जीवों को प्रबोधित करते हुए नाना देशों में बड़े-बड़े राजाओं को धर्म में स्थिर करते हुए चिरकाल तक विहार कर पुन: समोशरण सहित गिरनार पर्वत पर वापस लौट आये। द्वारिका की अन्त:पुर की रानियाँ, मित्रजन, द्वारिका की प्रजा तथा प्रद्युम्न सहित वसुदेव, बलदेव तथा श्रीकृष्ण भी बड़ी विभूति के साथ आये और भगवान नेमिनाथ को नमस्कार कर समोशरण में यथास्थान बैठ गये और धर्म का श्रवण करने लगे। F ryFE F
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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