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________________ उज्ज्वल भविष्य जानकर हर्षित भी हुई। | श्रीकृष्ण की तीसरी पटरानी जाम्बवती ने भी श्री नेमि जिनेन्द्रदेव से अपने पूर्वभव पूछे - दिव्यध्वनि में आया अन्य संसारी जीवों की भांति अपने पुण्य-पाप के अनुसार चतुर्गति की नाना योनियों में जन्ममरण करती एवं लौकिक सुख-दुःख के झूले में झूलते हुए हे जाम्बवती ! तूने अनेक बार आर्यिका के व्रत || म्ब लेकर तपश्चरण करके स्वर्गादि भी प्राप्त किये। वर्तमान में भी तू ब्रह्मेन्द्र की प्रधान इन्द्राणी से चयकर विजयार्द्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी जाम्बव नामक नगर के विद्याधर राजा जाम्बव की जाम्बवती पुत्री हुई है। इस भव में तू तपस्वनि होकर तप करेगी और स्वर्ग का उत्तम देव होकर वहाँ से चयकर राजपुत्र होगी। तदनन्तर तप के द्वारा मोक्ष को प्राप्त करेगी। 'भले काम का भला नतीजा' हे जाम्बवती ! तूने प्रत्येक पर्याय में तपश्चरण किया, संयमसाधना की, धर्म के काम किए, इस कारण संसार में भी अनुकूलतायें मिली और अन्त में उत्तमगति-पंचमगति की प्राप्ति भी होगी। इसीप्रकार श्रीकृष्ण की चौथी पटरानी सुशीला, पाँचवी पटरानी लक्ष्मणा, छटवीं गांधारी, साँतवीं गौरी और आठवीं पटरानी पद्मावती ने भी अपने-अपने पूर्वभव पूछे, जिनका श्री नेमिजिनेन्द्र की दिव्यध्वनि से समाधान पाकर सभी ने आत्मा के हित में लगने की प्रेरणा प्राप्त की। श्रीकृष्ण के बाद देवकी के एक गजकुमार नाम का आठवाँ पुत्र भी हुआ, जो पिता वसुदेव के समान || ही कान्ति का धारक था तथा श्रीकृष्ण का अत्यन्त प्रिय था। गजकुमार तीर्थंकरों एवं शलाका पुरुषों के वैराग्यप्रेरक पूर्वभव एवं चरित्र सुनकर संसार से भयभीत हो गया और पिता-पुत्र आदि समस्त बन्धुजनों को छोड़कर बड़ी विनय से जिनेन्द्र भगवान के पास पहुँचा और उनसे अनुमति ले दीक्षा ग्रहण कर तप करने लगा। गजकुमार की जिन कन्याओं के साथ सगाई हो रही थी, 54 FE56 FREE F5
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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