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________________ N . भ ३. कुमार वसुदेव बाल तीर्थंकर नेमिकुमार के पिता राजा समुद्रविजय ने अपने आठ भाईयों के विवाह किये। उनमें श्रीकृष्ण के पिता सबसे छोटे वसुदेव कामदेव के समान अत्यन्त सुन्दर थे। जब वे नगर में क्रीड़ार्थ निकलते ॥ थे, तब नगर की स्त्रियाँ उन्हें देख काम-विह्वल हो जाती थीं। इसलिए नगर के प्रतिष्ठित लोग राजा समुद्रविजय के पास गये और निवेदन करने लगे “हे राजन् ! आप के राज्य में हम सभी प्रकार से सुखी हैं। धन-धान्य की समृद्धि और व्यापार में भी वृद्धि है। हमें किसी बात की कमी नहीं है; पर हम आपसे यह निवेदन करने आये हैं कि आपके लघु भ्राता कुमार वसुदेव का अतिशय रूप-लावण्य हमारी समस्या बन गया है। यद्यपि इसमें उनका कोई दोष नहीं है; पर हमारी समस्या यह है कि जब वसुदेव शहर में घूमने निकलते हैं तो उन्हें देखकर हमारी स्त्रियाँ एवं बहू-बेटियाँ सुध-बुध खो बैठती हैं। कुछ के तो मन भी मलिन एवं चलायमान हो जाते हैं। ___ यद्यपि वसुदेव सदाचारी हैं, हमारी बहू-बेटियाँ भी सुशील हैं; परन्तु सूर्य को जैसे किसी से द्वेष नहीं, पर उसकी गर्मी से पित्त की उत्पत्ति तो हो ही जाती है। वैसे ही यद्यपि कुमार में कोई मनोविकार नहीं है; पर उनके रूप-लावण्य के अतिशय से स्त्रियों का चित्त स्वत: ही चलायमान हो जाता है। अत: आप ही जो उचित समझें, हमें मार्गदर्शन करें, जिससे कुमार सुखी रहें, उन्हें कोई मानसिक कष्ट न हो और नगरवासियों की व्याकुलता भी मिट जाये। राजा समुद्रविजय ने नगरवासियों को आश्वासन देकर विदा किया और फिर जब वसुदेव स्वत: ही मिलने के लिए बड़े भाई के पास पहुंचे, तब उन्होंने उन्हें अपने खाने-पीने की सुध रखने और आत्मसुरक्षा के दृष्टिकोण से बाहर न घूमने की सलाह दी। राजा उन्हें अपने साथ रानी के पास ले गए और रानी के समक्ष उन्हें अपनी सुरक्षा के दृष्टिकोण से समझाकर महल के उद्यान में ही घूमने को कहा । कुमार वसुदेव ने अपने
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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