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________________ ॥ उन्हें अन्तरंग से इसकी भी रुचि एवं उत्साह नहीं था; परन्तु वे किसी के सामने स्वयं को कमजोर सिद्ध ह | नहीं होने देना चाहते थे; अत: न्याय-नीति की मर्यादा में रहकर जितनी जो क्रीड़ा और मनोरंजन भाभियों के साथ उचित था, उतना उनके आग्रह के कारण निर्वाह किया। घर जाने पर श्रीकृष्ण को नेमिकुमार के सरल व्यवहार से ऐसा भ्रम हो गया कि अब नेमिकुमार शादी कराने को मना नहीं करेंगे। उन्होंने हर्षित होकर शीघ्र ही नेमिकुमार के लिए विधिपूर्वक भोजवंशियों की राजकुमारी राजमती की याचना की, उसके पाणिग्रहण संस्कार के लिए बन्धुजनों के पास खबर भेजी और रानियों सहित समस्त राजाओं को सम्मानपूर्वक बुलाया। श्रावण मास में शादी तय हो गई। समय पर शादी महोत्सव प्रारंभ हुआ, बारात ने प्रस्थान किया, जिसमें ५६ कोटि बाराती आये थे। ५६ कोटि' सुनकर चौंकिए नहीं, यहाँ कोटि का अर्थ करोड़ नहीं, बल्कि ५६ जाति या ५६ प्रकार के लोग थे - ऐसा भी इसका अर्थ हो सकता है । तात्पर्य यह है कि उनकी बारात में सभी जातियों के बहुतायत में लोग सम्मिलित हुए थे। रिम-झिम बरसात, सुहावना मौसम, हल्की सी मेघों की गर्जना आदि ने तो गर्मी को शान्त कर ही दिया था। साथ ही नेमिकुमार के गंभीर व्यक्तित्व ने भी शान्त रस का वातावरण निर्मित कर दिया था। ऐसी वर्षा ऋतु में एक दिन युवा नेमिकुमार, ध्वजा-पताकाओं से सुशोभित चार घोड़ों से जुते रथ पर सवार हो अनेक राजकुमारों के साथ राजमार्ग में दर्शकों पर दयाभाव रखते हुए धीरे-धीरे चल रहे थे। रास्ते में उन्होंने तृण-भक्षी पशुओं को राजमार्ग के दोनों ओर दीन-हीन दशा में आंसू बहाते और रंभाते देखा। उन्हें इस दीन-हीन हालत में खड़े देखकर नेमि ने पूछा - इनके अवरोध का क्या कारण है ? इन्हें क्यों रोक रखा है ? ___ उत्तर मिला - हे नेमिकुमार ! ये आपकी बारात के कारण रोके गये हैं। यद्यपि नेमिकुमार अवधिज्ञान से सब यथार्थ स्थिति जान सकते थे, तथापि उन्होंने सहज ही पूछ लिया - उत्तर ठीक ही मिला था - जब | २४ +EF
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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