SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ P_ भील ने जोर देकर कहा - 'मैं विष्णु से उत्पन्न हुआ हूँ।' इस बकवास करनेवाले की धृष्टता तो देखो - ऐसा कहकर उसे धनुष की नोक से अलग हटाकर ज्यों ही आगे जाने लगे कि उस भील वेषधारी प्रद्युम्न ने विद्या द्वारा निर्मित भीलों की सेना से दुर्योधन की सेना में जाकर अपना असली रूप प्रगट किया, उस असली रूप को देख कन्या निर्भय हो गई और नारद के कहने से यथार्थ बात को समझकर हर्षित हो सुखी हो गई। कन्या उदधिकुमारी और नारद मुनि के साथ विमान में बैठे प्रद्युम्नकुमार द्वारिका जा पहुंचे। वहाँ सत्यभामा का पुत्र भानु घुड़सवारी करने नगर के बाहर मैदान में आया था उसे प्रद्युम्न ने देखा । देखते ही वह विमान से उतरा और वृद्ध का रूप रखकर सुन्दर घोड़ा लेकर भानुकुमार के पास पहुँचा। और बोला - 'मैं यह घोड़ा भानुकुमार के लिए लाया हूँ।' देखते ही भानुकुमार उस घोड़े पर सवार हो गया । इच्छानुरूप वेष धारण करनेवाले उस घोड़े ने भानुकुमार को बहुत देर तक तो तंग किया और बाद में भानुकुमार को अपनी पीठ पर बैठाकर वृद्ध वेषधारी प्रद्युम्न के पास ले आया। भानुकुमार घोड़े से नीचे उतर आया। वृद्ध ने अट्टहास कर व्यंग में कहा - 'अहा ! घोड़ा चलाने में तो आप बहुत होशियार हैं ? साथ ही कहा कि मैं बूढ़ा हूँ, यदि कोई मुझे घोड़े पर बिठा दे तो मैं भी थोड़ा अपना घुड़सवारी का कौशल दिखा सकता हूँ।' भानुकुमार के लोगों ने उसे घोड़े पर बिठाने की बहुत कोशिश की, परन्तु उस वृद्ध ने अपना शरीर इतना भारी कर लिया कि कोई उसको घोड़े पर नहीं बिठा पाये। जब वे सब तंग हो गये तो वह स्वयं घोड़े पर चढ़ गया और अपना कौशल दिखलाता हुआ चला गया। इसके बाद उसने मायामयी बानरों और घोड़ों से सत्यभामा का उपवन उजाड़ डाला तथा उसकी बावड़ी सुखा दी। नगर के द्वार पर श्रीकृष्ण आ रहे थे कि उन्हें देख उसने मायामयी मक्खियों और डांस-मच्छरों को इतनी अधिक संख्या में छोड़ा कि उनका आगे बढ़ना कठिन हो गया। तदनन्तर वह गधों और मेढ़ों के रथ पर सवार हो नगर में चिरकाल तक क्रीड़ा करता रहा। इसतरह नाना प्रकार की क्रीड़ाओं से नगरवासियों को मोहित कर अपने बाबा वसुदेव के साथ युद्ध क्रीड़ा की। FREFEEP
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy