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________________ । घर चला गया। वर्षा लगातार सात दिन-रात तक होती रही। इस बीच में तुम दोनों शृंगाल की पर्याय में || भूख से अत्यन्त व्याकुल हो उठे और तुम दोनों श्रृंगालों ने भूख मिटाने हेतु उस किसान के वे भीगे उपकरण खा लिए। कुछ समय बाद पेट में बहुत भारी शूल की वेदना उठने से दोनों श्रृंगालों को असह्य वेदना सहन करनी पड़ी। अकामनिर्जरा के योग से प्रशस्त आयु का बन्ध हो गया और उसके फलस्वरूप मरकर सोमदेव ब्राह्मण जाति के गर्व से गर्वित अग्निभूत और वायुभूति नाम के तुम दोनों पुत्र हुए। पाप के उदय से प्राणियों को दुर्गति मिलती है और पुण्य के उदय से सुगति प्राप्त होती है इसलिए जाति का गर्व करना वृथा है। वर्षा बन्द होने पर जब किसान खेत पर पहुंचा तो वहाँ मरे हुए तुम दोनों श्रृंगालों को देखकर घर उठा लाया और उनकी मशकें बनवाकर अपना काम चलाने लगा। वे मशकें उसके घर में आज भी रखी हैं। तीव्र मान से वह किसान भी समय पाकर मर गया और स्वयं के पुत्र का पुत्र हुआ। वह कामदेव के समान कान्ति का धारक है तथा जाति स्मरण होने से झूठ-मूठ ही गूंगा के समान रहता है। देखो, वह अपने बन्धु-जनों के बीच में बैठा मेरी ओर टकटकी लगाकर देख रहा है। इतना कहकर मुनिराज ने उस गूंगे को अपने पास बुलाकर कहा कि तुझे तो जातिस्मरण ज्ञान से ज्ञात ही है कि तू वही किसान के पुत्र का पुत्र हुआ है। अब तू शोक और गूंगेपन को छोड़ तथा वचनरूपी अमृत को प्रकट कर, स्पष्ट बातचीत कर अपने बन्धुजनों को हर्षित कर! इस संसार में नट के समान स्वामी और सेवक, पिता और पुत्र, माता तथा स्त्री में विपरीतता देखी जाती है अर्थात् स्वामी सेवक हो जाता है और सेवक स्वामी हो जाता है, पितापुत्र हो जाता है, पुत्र पिता हो जाता है और माता स्त्री हो जाती है, स्त्री माता हो जाती है। यह संसार रहट में लगी घटियों के जाल के समान जटिल तथा कुटिल है। इसमें भ्रमण करनेवाले जन्तु निरन्तर ऊँच-नीच अवस्था को प्राप्त होते रहते ही हैं। इसलिए हे पुत्र ! संसाररूपी सागर को निःसार एवं भयंकर जानकर धर्म को अंगीकार कर! इसप्रकार मुनिराज ने जब उसके गूंगेपन का कारण प्रत्यक्ष दिखा दिया तब वह तीन प्रदक्षिणा देकर उनके चरणों में गिर पड़ा। उसके नेत्र आनन्द के आँसुओं से व्याप्त हो गये। वह बड़े आश्चर्य
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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