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________________ यह समाचार सुनकर सत्यभामा ने रुक्मणी के पास अपनी दूती भेजी जो रुक्मणी के चरणों में झुककर | कहने लगी कि हे स्वामिनी ! हमारी स्वामिनी सत्यभामा ने कहा है कि 'हम दोनों में से जिसके पहले पुत्र र होगा वह दुर्योधन की होनहार पुत्री को विवाहेगा' यह बात अपने स्वामी श्रीकृष्ण द्वारा निश्चित हो चुकी है वं १८४ ह 94. . श क था तथा यह भी अच्छी तरह से समझ लो कि उस विवाह के समय जिनके पुत्र न होगा, उसकी कटी हुई केश| राशि को वर-वधू अपने पैरों के नीचे रखकर स्नान करेंगे तथा यदि आपको यह इष्ट हो तो आप स्वीकृति दीजिए । रुक्मणी ने तुरन्त तथास्तु कहकर दासी को विदा किया। चतुर्थ स्नान के बाद रुक्मणी एक रात जब शय्या पर सोई तो उसने स्वप्न में हंस विमान के द्वारा आकाश में विहार किया जाना देखा। जागने पर उसने अपने पति से स्वप्न का फल पूछा - उत्तर में श्रीकृष्ण ने कहा तुम्हारे आकाश में विहार करनेवाला कोई महान भाग्यवान पुत्र होगा । पति के वचन सुनकर रुक्मणी प्रातः सूर्य की किरणों के संसर्ग से खिली हुई कमल के समान प्रसन्न हुई। तदनन्तर अल्पकाल में ही श्रीकृष्ण एवं समस्त परिजनों के आनन्द को बढ़ानेवाला अच्युतेन्द्र स्वर्ग से पुण्यात्मा जीव रुक्मणी के गर्भ में आ गया। उसीसमय सत्यभामा ने भी उत्तम स्वप्नपूर्वक स्वर्ग से च्युत हुए जीव को गर्भ में धारण किया । - प्रसव का समय पूर्ण होने पर रुक्मणी ने उत्तम लक्षणों से सहित पुत्र को जन्म दिया और साथ-साथ सत्यभामा ने भी उत्तम पुत्र को उत्पन्न किया। दोनों ही रानियों ने यह शुभ समाचार श्रीकृष्ण के पास एकसाथ भेजे। उससमय श्रीकृष्ण सो रहे थे । अतः दोनों दूत उनके जागने की प्रतीक्षा में वहीं खड़े रहे । संयोग से | सत्यभामा का दूत श्रीकृष्ण के सिरहाने एवं रुक्मणी का दूत श्रीकृष्ण के चरणों की ओर खड़ा था । जब कृष्ण जागे तो सर्वप्रथम उनकी दृष्टि रुक्मणी के दूत पर पड़ी रुक्मणी के दूत ने श्रीकृष्ण के जागते ही सर्वप्रथम 'तुरन्त रुक्मणी के पुत्र जन्म का समाचार सुनाया । उससे प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने | आभूषण उतार कर पुरस्कार में दे दिए। बाद में उन्होंने जब मुड़कर देखा तो उनकी दृष्टि सिरहाने खड़े स त्य भा मा रु क्म णी 15 को प्रा प्ति १९
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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