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________________ १७८ || उठकर खड़ी हो गई। उसने हाथ जोड़कर बड़े आदर से नारद को प्रणाम किया। नारद ने प्रत्युत्तर में आशीर्वाद 'द्वारिका के स्वामी कृष्ण तुम्हारे पति हों' रुक्मणी ने पूछा- ये श्रीकृष्ण कौन हैं? और आपने मुझे ऐसा आशीर्वाद क्यों दिया है? ह | देते हुए कहा - रि वं श क था नारदजी ने द्वारिका का परिचय कराते हुए श्रीकृष्ण के अन्तर्बाह्य व्यक्तित्व का परिचय कराया। श्रीकृष्ण का परिचय पाकर रुक्मणी कृष्ण में अत्यन्त अनुरक्त हो गई। इधर नारद ने रुक्मणी का आश्चर्यजनक रूप चित्रपट पर चित्रित करके कृष्ण को दिखाया । उस चित्रगत अनुपम रूप-गुणसम्पन्न अभूतपूर्व कन्या को देखकर कृष्ण ने दुगने आदरभाव से नारदजी से पूछा - हे भगवान ! यह विचित्र कन्या जो अपने चित्रपट पर अंकित की है, यह किसकी कन्या है? यह तो समस्त मानुषियों का तिरस्कार करनेवाली कोई विचित्र देवकन्या जान पड़ती है। कृष्ण के पूछने पर नारद ने सब समाचार ज्यों का त्यों सुना दिया। सब समाचार जानकर श्रीकृष्ण रुक्मणी के साथ विवाह करने की योजना | बनाने लगे । श्री कृ ष्ण द्वा रा रु क्म णी ह इधर सब समाचार जानने वाली रुक्मणी की फुआ ने एकान्त में ले जाकर योग्य समय में रुक्मणी से कहा – “हे बाले ! एकबार अवधिज्ञानी अतिमुक्तक मुनि यहाँ आये थे । उन्होंने तुझे देखकर कहा था कि | यह कन्या शुभलक्षण वाली है । अतः यह निश्चित ही नारायण श्रीकृष्ण की अतिप्रिय अर्द्धांगिनी बनेगी । कृष्ण के अन्तपुर में एक से बढ़कर एक - सोलह हजार स्त्रियाँ होंगी, उन सबमें यह प्रभुत्व प्राप्त करेगी ।” इस बात को बीते बहुत समय हो गया और यह बात आई-गई सी हो गई थी; किन्तु नारदजी ने इस बात को पुनः उठाया है। अब मुझे लगता है कि उन मुनिराज का कथन सत्य होकर ही रहेगा। परन्तु हे बाले ! | तेरा भाई रुक्मि तुझे शिशुपाल के लिए दे रहा है। र फुआ के वचन सुन पहले से ही मानस बनाकर बैठी रुक्मणी ने फुआ से उत्तर में कहा - "आपका ण कहना सही है, मुनिराज के वचन अन्यथा नहीं होते, अतः आप शीघ्र ही यह संदेश और मेरे अभिप्राय को । किसी तरह द्वारिकाधिपति के पास भेजिए । " १८
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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