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________________ | बलदेव के महल के आगे एक सभामण्डप सुशोभित हो रहा था। जो इन्द्र के सभा मण्डप के समान || था और अपनी दीप्ति से सूर्य की किरणों का खण्डन करने वाला था। उस नगरी में उग्रसेन आदि सभी | राजाओं के योग्य महलों की पंक्तियाँ भी सुशोभित थीं। वे महल आठ-आठ खण्ड के थे। | ऐसी सुन्दर नगरी की रचना करके कुबेर ने श्रीकृष्ण को नगरी में प्रवेश करने का निवेदन किया तथा | सबको एक से बढ़कर एक अनेक प्रकार के वस्त्र-आभूषणों से खूब सम्मान किया। साथ ही युद्ध के योग्य श्रेष्ठ अस्त्र-शस्त्र तथा दैनिक जीवन के निर्वाह की उत्तमोत्तम भोगोपभोग की सामग्री प्रदान की। कुबेर वापस स्वर्ग लोक चले गये। तदनन्तर यादवों के संघ ने समुद्र के तट पर श्रीकृष्ण और बलदेव का अभिषेक कर हर्षित हो उनकी जय-जयकार घोषित की। श्रीकृष्ण ने चतुरंग सेना और समस्त प्रजा के साथ कुबेर द्वारा निर्मित द्वारिकापुरी || श्री में प्रवेश किया। मथुरा, सूर्यपुर और वीर्यपुर के प्रवासियों ने अपने-अपने वर्तमान निवास स्थानों के नाम पूर्ववत रखकर संतोष प्राप्त किया। कुबेर की आज्ञा से यक्षों ने इस नगरी के समस्त भवनों में साढ़े तीन दिन तक अटूट धनधान्यादि की वर्षा की। जब कृष्ण वहाँ रहने लगे तब उनके वशीभूत पश्चिम के राजा उनकी आज्ञा मानने लगे । तत्पश्चात् द्वारिकापुरी के स्वामी श्रीकृष्ण अनेक राजाओं की हजारों कन्याओं के साथ विवाह करके नाना प्रकार से क्रीड़ायें करते हुए वहाँ सुख से समय व्यतीत करने लगे। जिनका शरीर समस्त कलाओं से सुशोभित था। शरीर में अनेक शुभलक्षण थे - ऐसे नेमिकुमार भी वहाँ बाल चन्द्रमा के समान दिनोंदिन बढ़ने लगे। नेमिकुमार, श्रीकृष्ण, बलभद्र और भोजकवृष्टि के निवास से द्वारिकापुरी अत्यधिक सुशोभित हो रही थी। ___"जब जो होना होता है, तब वही होता है और तदनुसार सभी कारण भी सहज सुलभ हो जाते हैं। अर्थात् | पाँचों समवाय मिल जाते हैं। जिन कारणों की हम कल्पना भी नहीं कर सकते, वे भी अचानक आकाश से उतर आते हैं।"
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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