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________________ अमितगति मुनिराज से तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ के पूर्व के पाँच-पाँच भवों की जानकारी ज्ञातकर वसुदेव बहुत प्रसन्न हुए और भावपूर्वक मुनिराज को नमन कर पत्नी देवकी सहित अपने घर मथुरा चले गये। मृत्यु की शंका से भयभीत कंस वसुदेव की निरन्तर सेवा करने लगा। तदनन्तर देवकी ने गर्भधारण किया। प्रसवकाल के आने पर जब देवकी के युगल पुत्र उत्पन्न हुए तो कंस से उनके जीवन की रक्षा हेतु इन्द्र की आज्ञा से देवों द्वारा उन युगल पुत्रों को सेठ सुदृष्टि की पत्नी अलका (पूर्वभव की रेवती धाय का जीव) के पास पहुंचा दिया गया। संयोग से उसीसमय अलका के भी युगलपुत्र हुए और तत्काल मर गये थे। देव उन दोनों मृत पुत्रों को देवकी के प्रसूतिगृह में रख आया। मुनि की पूर्व घोषणा के अनुसार कंस ने देवकी के पुत्रों को अपनी मौत के यमदूत मानकर उन्हें मार डालने की खोटी नियत से अपनी बहिन देवकी के प्रसूतिगृह में प्रवेश कर उन दोनों मृत पुत्रों को देखा और रौद्र परिणामों से विवेकशून्य होकर उन दोनों के पैर पकड़कर उन्हें शिला पर पछाड़ दिया और स्वयं को सुरक्षित मानकर मन ही मन प्रसन्न हो गया। इसके बाद देवकी के क्रम-क्रम से दो युगल और हुए। देव द्वारा उन्हें भी अलका सेठानी के पास भेजकर उन्हें सुरक्षित कर दिया गया तथा उसी समय उत्पन्न हुए अलका के निष्प्राण युगलों को देवकी के प्रसूतिगृह में पहुँचा दिया गया इधर पापी कंस ने उन दो निष्प्राण युगलों को भी पहले के समान ही शिला पर पछाड़ दिया। वसुदेव की पत्नी देवकी की कूख से उत्पन्न हुए छहों पुत्र अत्यन्त रूपवान तो थे ही, पुण्यवान भी थे। उन पुत्रों के वृद्धिंगत होने के साथ-साथ सेठ सुदृष्टि के घर में वैभव भी वृद्धिंगत हो रहा था। अपूर्व-अपूर्व वस्तुओं का लाभ हो रहा था। Tv 0 4 45 EME FREE त
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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