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________________ || (घूसों) से खूब पीटा तो मार से घबराकर वह अपना गंधहस्ती का रूप छोड़कर नीलकंठ के असली रूप | में प्रगट हो गया। वसुदेव धीरे-धीरे तालाब के जल में गिरे और बिना किसी आकुलता के अटवी से निकलकर शालगुहा नामक नगरी में पहुँचे। वहाँ उन्होंने पद्मावती से विवाह किया। वहाँ से जयपुर, जयपुर से भद्रिलपुर गये । भद्रिलपुर में चारुहासिनी नाम की कन्या थी, यह दिव्य औषधि के प्रभाव से सदा युवती | रहती थी। वसुदेव ने उसके साथ विवाह किया। उससे उनके पौंडू नामक पुत्र हुआ। एकदिन वसुदेव रात्रि में शयन कर रहे थे कि उनका वैरी अंगारक उन्हें हंस का रूप धारण कर हर ले | गया। जब वे उससे छूटे तो धीरे-धीरे आकाश से गंगा नदी में गिरे। गंगा पार कर किनारे पर आये। सबेरा होते-होते वे इलावर्धन नामक नगर पहुँचे । वहाँ वे जिस सेठ की पैढी पर रात में रुके उसकी दुकान में भारी धन का लाभ हो गया। इसे वसुदेव का प्रभाव ही मानकर सेठ उन्हें सम्मानपूर्वक घर ले गया तथा अपनी रत्नवती कन्या प्रदान की। वसुदेव निरन्तराय भोगों को भोगते हुए कुछ दिन वहीं रहने लगे। __तत्पश्चात् वे एक दिन इन्द्रध्वज विधान (पूजन) देखने महापुर नगर गये। वहाँ उन्होंने नगर के बाहर बहुत से बड़े-बड़े महल देखकर पूछा - "ये महल किसने/कब बनवाए?" उत्तर मिला - "राजा सोमदत्त ने अपनी कन्या के स्वयंवर में आनेवाले राजाओं को ठहरने के लिए बनवाए हैं; परन्तु उनकी पुत्री किसी कारण स्वयंवर की विधि से विरक्त हो गई, इसकारण वह स्वयंवर नहीं हो पाया। सभी आनेवाले राजागण वापिस विदा कर दिए गए।" __यह सुनकर कुमार वसुदेव उस कन्या के मन की स्थिति का विचार करते हुए इन्द्रध्वज विधान देखने को बैठे ही थे कि अंगरक्षकों के साथ राजा सोमदत्त की स्त्रियाँ वहाँ आ पहुँची। उन स्त्रियों में वह कन्या भी थी जिसने स्वयंवर निरस्त कराया था। वे सब स्त्रियाँ विधान देखकर थोड़े समय बाद ही जब उठकर जाने लगी, तभी एक उन्मत्त हाथी बन्धन तोड़कर वहाँ उपद्रव करने लगा। लड़की तो भयाक्रान्त होकर मूर्च्छित ही हो गई, साथ ही अन्य स्त्रियाँ भी घबराने लगीं। Fro Faro RF MEEEE
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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