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________________ १०१ ह अ. क्र. क्योंकि उन्होंने नरभक्षी राक्षस को समाप्त करके पूरे नगर को उसके आतंक और भय से मुक्त कर बहुत बड़ी सुरक्षा प्रदान की थी। वं यह नरभक्षी राक्षस वस्तुतः राक्षस नहीं, बल्कि मांसाहारी राजकुमार था, जो कलिंगदेश के कांचनपुर | नगर के जितशत्रु राजा का सौदास नामक पुत्र था । सौदास को मयूर मांस प्रिय था, एक दिन उसके मांस | को बिल्ली खा गई, रसोइया घबराया और वह दौड़ा-दौड़ा श्मशान में गया। वहाँ उसे किसी मृत बालक र | का शव मिल गया जो अभी-अभी कोई गड्ढे में गाड़कर गया था । रसोइये ने उस नरमांस को पकाकर सौदास को खिलाया । वह सौदास को प्रतिदिन के मांसाहार से अधिक स्वादिष्ट लगा। उसने रसोइए से प्रेम से पूछा तो रसोइए ने सब सच-सच बता दिया । बस, उस दिन से राजकुमार के आदेश से वह रसोइया नगर | से प्रतिदिन एक बालक की चोरी कराकर उसका मांस पकाकर राजकुमार को खिलाने लगा। बाद में पिता जितशत्रु के मारे जाने से वह राजकुमार स्वयं राजा बन गया । था फिर तो उसके आतंक से खुलकर प्रतिदिन एक बालक की हत्या होने लगी, इससे सब नगरवासी दुःखी थे; जब कुमार वसुदेव ने उस नरभक्षी राजा का अन्त कर दिया तो सभी नगरवासियों ने राहत की सांस ली और वसुदेव का खूब स्वागत-सत्कार किया । तदनन्तर वहाँ से चलकर कुमार वसुदेव ने अचल ग्राम के सेठ की वनमाला नामक पुत्री के साथ विवाह किया और वहाँ से वनमाला को साथ लेकर वे वेदसामपुर पहुँचे । वीर वसुदेव ने वेदसामपुर के राजा कपिल को युद्ध में जीत कर उसकी कपिला नामक पुत्री के साथ विधिपूर्वक विवाह किया । कपिला से कपिल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जिस नीलकंठ विद्याधर ने वसुदेव की पत्नी नीलयंशा का पहले अपहरण किया था, वह विद्याधर गन्धहस्ती (हाथी) का रूप धरकर वेदसामपुर आया । वसुदेव उसे बन्धन में डालने के लिए ज्यों ही उस पर आरूढ़ हुए त्यों ही गन्धहस्ती वसुदेव को हरण कर आकाश में ले गया । वसुदेव ने जब उसे मुट्ठियों के प्रहार कु moow to व र्ष औ र स फ ल ता यें
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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