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________________ लिए आगे बढ़ी कि मयूर वेशधारी उसी नीलकंठ विद्याधर ने उसका अपहरण कर लिया, जिसके साथ शादी | होने की बात तय हुई थी। नीलयंशा के हरे जाने पर वसुदेव विह्वल होकर वन में घूमते रहे। एक दिन वह भूखे थे, इसलिए वे एक गोपों की बस्ती में गये । गोपों की स्त्रियों ने उन्हें भोजन देकर उनकी भूख-प्यास और परिश्रम की बाधा दूर की। दूसरे दिन प्रात: वसुदेव दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। आते हुए उन्हें | रास्ते में गिरतोट नगर मिला। उस नगर में उस समय विशिष्ट व्यक्तियों की उपस्थिति में समस्त दिशाओं में वेदपाठ की ध्वनि प्रसारित हो रही थी। वसुदेव ने उस धार्मिक वातावरण का कारण पूछा तो उत्तर में एक व्यक्ति ने कहा - "यहाँ एक वसुदेव नामक ब्राह्मण रहता है, उसके एक सोमश्री नामक कन्या है। वह अतिसुन्दर है और अनेक कलाओं में निपुण है। भविष्यवेत्ता ने कहा है कि जो इसे वाद-विवाद में जीत लेगा, वही इसका पति होगा।" यह जानकर कुमार वसुदेव ने ब्रह्मदत्त नामक उपाध्याय के पास जाकर उनसे प्रार्थना की कि आप हमें वेद पढ़ा दीजिए। ब्रह्मदत्त उपाध्याय ने कहा जो प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग - इन चार अनुयोगों के रूप में तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के द्वारा दिव्यध्वनि हुई थी, उसी विषयवस्तु का निरूपण आचार्यों ने चार अनुयोगों के रूप में लिखा है। उन जैन वेदों को भी ब्रह्मदत्त उपाध्याय ने कुमार वसुदेव को पढ़ाया। उन समस्त वेदों के ज्ञान से वसुदेव ने सोमश्री को जीतकर विधिपूर्वक उसके साथ विवाह किया। जो अपने सौन्दर्य तथा गुण-सम्पदा के द्वारा विद्याधरों से भी श्रेष्ठ थे और जो सुबुद्धिरूपी स्त्री के सखा थे, ऐसे कुमार वसुदेव ने गिरितट नामक नगर में स्वतंत्र एवं जिनभक्त रमणी सोमश्री के साथ चिरकाल तक दाम्पत्य सुख भोगा। इस नीलयंशा के कथन के माध्यम से ग्रन्थकर्ता ने कुमार वसुदेव और नीलयंशा के अनुराग को अकारण न बताकर पूर्व संस्कारवश एवं अमोघवादी मुनि की घोषणा के अनुसार बताया है, इसप्रकार के कथन से | Favo F5FERE ६
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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