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________________ छहढाला छठवीं ढाल (३) शुभ उपयोग तो बन्ध का अथवा संसार का कारण है, किन्तु शुद्ध उपयोग निर्जरा और मोक्ष का कारण है। प्रश्नावली (जीव) भाता है, वह (जीव) प्रतिक्रमण है। (नियमसार, गाथा - ९१)। प्रमाण :- स्व-पर वस्तु का निश्चय करनेवाला सम्यग्ज्ञान । बहिरंग तप :- दूसरे देख सकें - ऐसे पर-पदार्थों से सम्बन्धित इच्छानिरोध। मनोगुप्ति :- मन की ओर उपयोग न जाकर आत्मा में ही लीनता। महाव्रत :- निश्चयरत्नत्रयपूर्वक तीनों योग (मन, वचन, काय) तथा करने-कराने-अनुमोदन के भेद सहित हिंसादि पाँच पापों का सर्वथा त्याग। जैन साधु (मुनि) को हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह - इन पाँचों पापों का सर्वथा त्याग होता है। रत्नत्रय :- निश्चयसम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र। वचनगुप्ति :- बोलने की इच्छा को रोकना अर्थात् आत्मा में लीनता। शुक्लध्यान :- अत्यन्त निर्मल, वीतरागतापूर्ण ध्यान । शुद्ध उपयोग :- शुभ-अशुभ, राग-द्वेषादि से रहित आत्मा की चारित्र परिणति। समिति :- प्रमादरहित यत्नाचारसहित सम्यक् प्रवृत्ति । स्वरूपाचरणचारित्र :- आत्मस्वरूप में एकाग्रतापूर्वक रमणता - लीनता। अन्तर-प्रदर्शन (१) 'नय' तो ज्ञाता अर्थात् जाननेवाला है और निक्षेप' ज्ञेय अर्थात् ज्ञान में ज्ञात होने योग्य है। (२) प्रमाण तो वस्तु के सामान्य-विशेष समस्त भागों को जानता है, किन्तु नय वस्तु के एक भाग को मुख्य रखकर जानता है। १ अंतरंग तप, अनुभव, आवश्यक, गुप्ति, गुप्तियाँ, तप, द्रव्यहिंसा, अहिंसा, ध्यानस्थ मुनि, नय, निश्चय, आत्मचारित्र, परिग्रह, प्रमाण, प्रमाद, प्रतिक्रमण, बहिरंग तप, भावहिंसा, अहिंसा, महाव्रत, पंच महाव्रत, रत्नत्रय, शुद्धात्म-अनुभव, शुद्ध-उपयोग, शुक्लध्यान, समिति और समितियों के लक्षण बतलाओ। २. अघातिया, आवश्यक, उपयोग, कायगुप्ति, छियालीस दोष, तप, धर्म, परिग्रह, प्रमाद, प्रमाण, मुनिक्रिया, महाव्रत, रत्नत्रय, शील, शेष गुण, समिति, साधुगुण और सिद्धगुण के भेद कहो। ३. नय और निक्षेप में, प्रमाण और नय में, ज्ञान और आत्मा में, शुभ____ उपयोग और शुद्ध-उपयोग में अन्तर बतलाओ। ४. आठवीं पृथ्वी, ग्रन्थ, ग्रन्थकार, ग्रन्थ-छन्द, ग्रन्थ-प्रकरण, सर्वोत्तम तप, सर्वोत्तम धर्म, संयम का उपकरण, शुचि का उपकरण और ज्ञान का उपकरण - आदि के नाम बतलाओ। ५. ध्यानस्थ मुनि, सम्यग्ज्ञान और सिद्ध का सुख आदि के दृष्टान्त बतलाओ। ६. छह ढालों के नाम, मुनि के पीछी आदि का अपरिग्रहपना, रत्नत्रय के नाम, श्रावक को नग्नता का अभाव आदि के कारण मात्र बतलाओ। ७. अरिहन्त दशा का समय, अन्तिम उपदेश, आत्मस्थिरता के समय का सुख, केशलोंच का समय, कर्मनाश से उत्पन्न होनेवाले गुणों का विभाग, ग्रन्थ-रचना का काल, जीव की नित्यता तथा अमूर्तिकपना, परिषह जय का फल, रागरूपी अग्नि की शान्ति का उपाय, शुद्ध आत्मा, शुद्ध
SR No.008344
Book TitleChahdhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size326 KB
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