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________________ छहढाला (४) आत्महित, आत्मशक्ति का विस्मरण, गृहीत मिथ्यात्व, जीवतत्त्व की पहिचान न होने में किसका दोष है, तत्त्व का प्रयोजन, दुःख, मोक्षसुख की अप्राप्ति और संसार-परिभ्रमण के कारण दर्शाओ। (५) मिथ्यादृष्टि का आत्मा, जन्म और मरण, कष्टदायक वस्तु आदि सम्बन्धी विचार प्रकट करो। (६) कुगुरु, कुदेव और मिथ्याचारित्र आदि के दृष्टान्त दो। आत्महितरूप धर्म के लिए प्रथम व्यवहार या निश्चय? (७) कुगुरु तथा कुधर्म का सेवन और रागादिभाव आदि का फल बतलाओ। मिथ्यात्व पर एक लेख लिखो। अनेकान्त क्या है? राग तो बाधक ही है, तथापि व्यवहार मोक्षमार्ग को (शुभराग का) निश्चय का हेतु क्यों कहा है? अमुक शब्द, चरण अथवा छन्द का अर्थ और भावार्थ बतलाओ। दूसरी ढाल का सारांश समझाओ। तीसरी ढाल नरेन्द्र छन्द (जोगीरासा) आत्महित, सच्चा सुख तथा दो प्रकार से मोक्षमार्ग का कथन आतम को हित है सुख सो सुख आकुलता बिन कहिये। आकुलता शिवमांहि न तातें, शिवमग लाग्यो चहिये ।। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरन शिव मग, सो द्विविध विचारो। जो सत्यारथ-रूप सो निश्चय, कारण सो व्यवहारो॥१॥ हे जिन तेरो सुजस उजागर गावत हैं मुनिजन ज्ञानी ।।टेक ।। दुर्जय मोह महाभट जाने निज वस कीने हैं जग प्रानी। सो तुम ध्यान कृपान पान गहिं तत् छिन ताकी थिति हानी।।१।। सुप्त अनादि अविद्या निद्रा जिन जन निज सुधि बिसरानी। वै सचेत तिन निज निधि पाई श्रवण सुनी जब तुम वानी।।२।। मंगलमय तू जग में उत्तम, तू ही शरण शिवमग दानी। तुम पद सेवा परम औषधि जन्म-जरा-मृत गद हानि ॥३॥ तुमरे पंचकल्याणक माहीं त्रिभुवन मोह दशा हानी। विष्णु विदाम्बर जिष्णु दिगम्बर बुध शिव कहि ध्यावत ध्यानी।।४।। सर्व दर्व गुण परिजय परिणति, तुम सुबोध में नहिं छानी। तातें दौल' दास उर आशा प्रकट करी निज रस सानी।।५।।
SR No.008344
Book TitleChahdhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size326 KB
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