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________________ ३३९ शीलपाहुड दसपुब्वियस्स भावो यण किं पुणु णिम्मलो जादो।।३१।। यदि ज्ञानेन विशुद्धः शीलेन विना बुधैर्निर्दिष्टः । दशपूर्विकस्य भाव: च न किं पुन: निर्मल: जातः ।।३१।। अर्थ – जो शील के बिना ज्ञान ही से विसोह अर्थात् विशुद्ध भाव पंडितों ने कहा हो तो दश पूर्व को जाननेवाला जो रुद्र उसका भाव निर्मल क्यों नहीं हुआ, इसलिए ज्ञात होता है कि भाव निर्मल शील ही से होते हैं। भावार्थ - कोरा ज्ञान तो ज्ञेय को ही बताता है, इसलिए वह मिथ्यात्व कषाय होने पर विपर्यय हो जाता है,अत: मिथ्यात्व कषाय का मिटना ही शील है, इसप्रकार शील के बिना ज्ञान ही से मोक्ष की सिद्धि होती नहीं, शील के बिना मुनि भी हो जाय तो भ्रष्ट हो जाता है। इसलिए शील को प्रधान जानना ।।३१।। आगे कहते हैं कि यदि नरक में भी शील हो जाय और विषयों में विरक्त हो जाय तो वहाँ से निकलकर तीर्थंकर पद को प्राप्त होता है - जाए विसयविरत्तो सो गमयदि णरयवेयणा पउरा । ता लेहदि अरुहपयं भणियं जिणवड्ढमाणेण ।।३२।। य: विषयविरक्तः स: गमयति नरकवेदना: प्रचुराः। तत् लभते अर्हत्पदं भणितं जिनवर्द्धमानेन ।।३२।। अर्थ – विषयों से विरक्त है सो जीव नरक की बहुत वेदना को भी गँवाता है वहाँ भी अति दु:खी नहीं होता है और वहाँ से निकलकर तीर्थंकर होता है ऐसा जिन वर्द्धमान भगवान् ने कहा है। भावार्थ - जिनसिद्धान्त में ऐसे कहा है कि तीसरी पृथ्वी से निकलकर तीर्थंकर होता है यह भी शील का माहात्म्य है। वहाँ सम्यक्त्व सहित होकर विषयों से विरक्त हआ भली भावना भावे तब नरक वेदना भी अल्प हो जाती है और वहाँ से निकलकर अरहंतपद प्राप्त करके मोक्ष पाता है, ऐसा विषयों से विरक्तभाव वह शील का ही माहात्म्य जानो। सिद्धान्त में इसप्रकार कहा है कि सम्यग्दष्टि के ज्ञान और वैराग्य की शक्ति नियम से होती है, वह वैराग्यशक्ति है वही शील का यदि शील बिन भी ज्ञान निर्मल ज्ञानियों ने कहा तो। दशपूर्वधारी रूद्र का भी भाव निर्मल क्यों न हो।।३१।। यदि विषयविरक्त हो तो वेदना जो नरकगत। वह भूलकर जिनपद लहे यह बात जिनवर ने कही।।३२।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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