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________________ १४५ भावपाहुड हिम अर्थात् शीत पाले से, अग्नि से, जल से, बड़े पर्वत पर चढ़कर पड़ने से, बड़े वृक्ष पर चढ़कर गिरने से, शरीर का भंग होने से, रस अर्थात् पारा आदि की विद्या उसके संयोग से धारण करके भक्षण करे, इससे और अन्याय कार्य, चोरी, व्यभिचार आदि के निमित्त से इसप्रकार अनेकप्रकार के कारणों का आयु का व्युच्छेद (नाश) होकर कुमरण होता है। इसलिए कहते हैं कि हे मित्र ! इसप्रकार तिर्यंच, मनुष्य जन्म में बहुतकाल बहुतबार उत्पन्न होकर अपमृत्यु अर्थात् कुमरण संबंधी तीव्र महादुःख को प्राप्त हुआ । भावार्थ - इस लोक में प्राणी की आयु (जहाँ सोपक्रम आयु बँधी है उसी नियम के अनुसार) तिर्यंच-मनुष्य पर्याय में अनेक कारणों से छिदती है, इससे कुमरण होता है। इससे मरते समय तीव्र दुःख होता है तथा खोटे परिणामों से मरण कर फिर दुर्गति ही में पड़ता है, इसप्रकार यह जीव संसार में महादु:ख पाता है। इसलिए आचार्य दयालु होकर उन दुःखों को बारबार दिखाते हैं और संसार से मुक्त होने का उपदेश करते हैं, इसप्रकार जानना चाहिए ।। २५-२६-२७।। आगे निगोद के दुःख को कहते - छत्तीस तिण्णि सया छावट्ठिसहस्सवारमरणाणि । अंतोमुहुत्तमज्झे पत्तो सि निगोयवासम्मि ।। २८ ।। षट्त्रिंशत् त्रीणि शतानि षट्षष्टिसहस्रबारमरणानि । अन्तर्मुहूर्तमध्ये प्राप्तोऽसि निकोतवासे ।। २८ । अर्थ - हे आत्मन् ! तू निगोद के वास में एक अन्तर्मुहूर्त में छयासठ हजार तीन सौ छत्तीस बार मरण को प्राप्त हुआ। I भावार्थ - निगोद में एक श्वास के अठारहवें भाग प्रमाण आयु पाता है। वहाँ एक मुहूर्त के सैंतीससौ तिहत्तर श्वासोच्छ्वास गिनते हैं । उनमें छत्तीससौ पिच्यासी श्वासोच्छ्वास और एक श्वास के तीसरे भाग के छयासठ हजार तीन सौ छत्तीस बार निगोद में जन्म मरण होता है । इसका दुःख यह प्राणी सम्यग्दर्शनभाव पाये बिना मिथ्यात्व के उदय के वशीभूत होकर सहता है। भावार्थ - अंतर्मुहूर्त्त में छयासठ हजार तीन सौ छत्तीस बार जन्म-मरण कहा, वह अठ्या श्वास कम मुहूर्त इसप्रकार अन्तर्मुहूर्त में जानना चाहिए ।। २८ ।। इस जीव ने नीगोद में अन्तरमुहूरत काल में । छयासठ सहस अर तीन सौ छत्तीस भव धारण किये ।। २८ ।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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