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________________ १०० अष्टपाड वि ण य स ज . । । । णाणेण लहदि लक्खं लक्खंतो मोक्खमग्गस्स ।।२२।। ज्ञानं पुरुषस्य भवति लभते सुपुरुषोऽपि विनयसंयुक्तः। ज्ञानेन लभते लक्ष्यं लक्षयन् मोक्षमार्गस्य ।।२२।। अर्थ – ज्ञान पुरुष के होता है और पुरुष विनयसंयुक्त हो तो ज्ञान को प्राप्त करता है, जब ज्ञान को प्राप्त करता है तब उस ज्ञान द्वारा ही मोक्षमार्ग का लक्ष्य जो ‘परमात्मा का स्वरूप' उसको लक्षता-देखता-ध्यान करता हुआ उस लक्ष्य को प्राप्त करता है। भावार्थ - ज्ञान पुरुष के होता है और पुरुष ही विनयवान होवे सो ज्ञान को प्राप्त करता है, उस ज्ञान द्वारा ही शुद्ध आत्मा का स्वरूप जाना जाता है, इसलिए विशेष ज्ञानियों के विनय द्वारा ज्ञान की प्राप्ति करनी, क्योंकि निज शुद्ध स्वरूप को जानकर मोक्ष प्राप्त किया जाता है। यहाँ जो विनयरहित हो, यथार्थ सूत्र पद से चिगा हो, भ्रष्ट हो गया हो उसका निषेध जानना ।।२२।। आगे इसी को दृढ़ करते हैं - मइधणुहं जस्स थिरंसुदगुण बाणा सुअस्थि रयणत्तं । परमत्थबद्धलक्खो णवि चुक्कदि मोक्खमग्गस्स ।।२३।। मतिधनुर्यस्य स्थिरं श्रुतं गुण: बाणा: सुसंति रत्नत्रयं । परमार्थबद्धलक्ष्य: नापि स्खलति मोक्षमार्गस्य ।।२३।। अर्थ – जिस मुनि के मतिज्ञानरूप धनुष स्थिर हो, श्रुतज्ञानरूप गुण अर्थात् प्रत्यंचा हो, रत्नत्रयरूप उत्तम बाण हो और परमार्थस्वरूप निजशुद्धात्मस्वरूप का संबंधरूप लक्ष्य हो, वह मुनि मोक्षमार्ग को नहीं चूकता है। भावार्थ - धनुष की सब सामग्री यथावत् मिले तब निशाना नहीं चूकता है वैसे ही मुनि के मोक्षमार्ग की यथावत् सामग्री मिले तब मोक्षमार्ग से भ्रष्ट नहीं होता है। उसके साधन से मोक्ष को प्राप्त होता है। यह ज्ञान का माहात्म्य है, इसलिए जिनागम के अनुसार सत्यार्थ ज्ञानियों का विनय करके ज्ञान का साधन करना ।।२३।। इसप्रकार ज्ञान का निरूपण किया। (८) आगे देव का स्वरूप कहते हैं। मति धनुष श्रुतज्ञान डोरी रत्नत्रय के बाण हों। परमार्थ का हो लक्ष्य तो मुनि मुक्तिमग नहीं चूकते ।।२३।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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