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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पूर्वरंग कर्मणि नोकर्मणि चाहमित्यहकं च कर्म नोकर्म। यावदेषा खलु बुद्धिरप्रतिबुद्धो भवति तावत्।।१९ ।। यथा स्पर्शरसगन्धवर्णादिभावेषु पृथुबुध्नोदराद्याकारपरिणतपुद्गल-स्कन्धेषु घटोऽयमिति, घटे च स्पर्शरसगन्धवर्णादिभावाः पृथुबुध्नोदराद्याकारपरिणतपुद्गलस्कन्धाश्चामी इति वस्त्वभेदेनानुभूतिस्तथा कर्मणि मोहादिष्वन्तरङ्गेषु नोकर्मणि शरीरादिषु बहिरङ्गेषु चात्मतिरस्कारिषु पुद्गलपरिणामेष्वहमित्यात्मनि च कर्म मोहादयोऽन्तरङ्गा नोकर्म शरीरादयो बहिरङ्गाश्चात्मतिरस्कारिणः पुद्गलपरिणामा अमी इति वस्त्वभेदेन यावन्तं कालमनुभूतिस्तावन्तं कालमात्मा भवत्यप्रतिबुद्धः। यदा कदाचिद्यथा रूपिणो दर्पणस्य स्वपराकारावभासिनी स्वच्छतैव वढेरौष्ण्यं ज्वाला च तथा नीरूपस्यात्मन: स्वपराकारावभासिनी ज्ञातृतैव पुद्गलानां कर्म नोकर्म चेति स्वतः परतो वा भेदविज्ञानमूलानुभूतिरुत्पत्स्यते तदैव प्रतिबुद्धो भविष्यति। गाथार्थ:- [ यावत् ] जबतक इस आत्माकी [कर्मणि] ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, भावकर्म [च ] और [ नोकर्मणि ] शरीरादि नोकर्ममें [अहं ] 'यह मैं हूँ' [च ] और [ अहकं कर्म नोकर्म इति] मुझमें (-आत्मामें) 'यह कर्म-नोकर्म हैं - [ एषा खलु बुद्धिः] ऐसी बुद्धि है, [ तावत् ] तबतक [ अप्रतिबुद्धः ] यह आत्मा अप्रतिबुद्ध [ भवति] है। टीका:- जैसे स्पर्श, रस, गंध, वर्ण आदि भावोमें तथा चौड़ा, गहरा , अवगाहरूप उदरादिके आकार परिणत हुये पुद्गलके स्कंधोमें यह घट है' इसप्रकार, और घड़ेमें ‘यह स्पर्श, रस, गंध, वर्ण आदि भाव तथा चौड़े गहरे, उदराकार आदिरूप परिणत पुद्गल-स्कंध हैं' इसप्रकार वस्तुके अभेदसे अनुभूति होती है, इसीप्रकार कर्म-मोह आदि अंतरंग परिणाम तथा नोकर्म-शरीरादि बाह्य, वस्तुयें-सब पुद्गलके परिणाम हैं और आत्माके तिरस्कार करने वाले हैं-उनमें 'यह मैं हूँ' इसप्रकार और आत्मामें ‘यह कर्म-मोह आदि अंतरंग तथा नोकर्म-शरीरादि बहिरंग, आत्म-तिरस्कारी (आत्माक तिरस्कार करनेवाले) पुद्गल-परिणाम हैं' इसप्रकार वस्तुके अभेदसे जबतक अनुभूति है तबतक आत्मा अप्रतिबुद्ध है; और जब कभी, जैसे रूपी दर्पणकी स्वच्छता ही स्व-परके आकारका प्रतिभास करनेवाली है और उष्णता तथा ज्वाला अग्निकी है इसीप्रकार अरूपी आत्माकी तो अपने को और पर को जाननेवाली ज्ञातृता ही है और कर्म तथा नोकर्म पुद्गलके हैं इसप्रकार स्वतः अथवा परोपदेशसे जिसका मूल भेदविज्ञान है ऐसी अनुभूति उत्पन्न होगी तब ही (आत्मा) प्रतिबुद्ध होगा। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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