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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [अब पण्डित जयचंद्रजी भाषा टीका पूर्ण करते हैं:-] कुंदकुंदमुनि कियो गाथाबंध प्राकृत है प्राभृतसमय शुद्ध आतम दिखावनूं, सुधाचंद्रसूरि करी संस्कृत टीका वर आत्मख्याति नाम यथातथ्य भावनूं; देशकी वचनिकामें लिखि जयचंद्र पढ़े संक्षेप अर्थ अल्पबुद्धिकू पावनूं, पढ़ो सुनो मन लाय शुद्ध आतमा लखाय ज्ञानरूप गहौ चिदानंद दरसावनूं। १ -दहा समयसार अविकारका , वर्णन कर्ण सुनंत; द्रव्य-भाव-नोकर्म तजि , आतमतत्त्व लखंत। २। इसप्रकार इस समयप्राभृत (अथवा समयसार) नामक शास्त्रकी आत्मख्याति नामकी संस्कृत टीकाकी देशभाषामय वचनिका लिखी है। इसमें संस्कृत-टीकाका अर्थ लिखा है और अति संक्षिप्त भावार्थ लिखा है, विस्तार नहीं किया है। संस्कृत टीकामें न्यायसे सिद्ध हुए प्रयोग हैं। यदि उनका विस्तार किया जाय तो अनुमान प्रमाणके पाँच अंगपूर्वक-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमनपूर्वक-स्पष्टतासे व्याख्यान करनेपर ग्रंथ बहुत बढ़ जाय; इसलिये आयु, बुद्धि , बल और स्थिरताकी अल्पताके कारण, जितना बन सका है उतना, संक्षेपसे प्रयोजनमात्र लिखा है। इसे पढ़कर भव्य जन पदार्थको समझना। किसी अर्थमें हीनाधिक्ता हो तो बुद्धिमान जन मूल ग्रंथानुसार यथार्थ समझ लेना। इस ग्रंथके गुरु-संप्रदायका ( -गुरुपरंपरागत उपदेशका) व्युच्छेद हो गया है, इसलिये जितना हो सके उतना यथाशक्ति अभ्यास हो सकता है। तथापि जो स्याद्वादमय जिनमतनी आज्ञा मानते हैं, उन्हें विपरीत श्रद्धान नहीं होता। यदि कहीं अर्थको अन्यथा समझना भी हो जाये तो विशेष बुद्धिमानका निमित्त मिलनेपर यथार्थ हो जाता है। जिनमतके श्रद्धालु हठग्राही नहीं होते। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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