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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार केचिद्द्रव्यलिङ्गमज्ञानेन मोक्षमार्ग मन्यमानाः सन्तो मोहेन द्रव्यलिङ्गमेवोपाददते। तदनुपपन्नम्; सर्वेषामेव भगवतामर्हद्देवानां, शुद्धज्ञानमयत्वे द्रव्यलिङ्गाश्रयभूतशरीरममकारत्यागात्, तदाश्रितद्रव्यलिङ्गत्यागेन दर्शनज्ञानचारित्राणां मोक्षमार्गत्वेनोपासनस्य दर्शनात्। अथैतदेव साधयति ण वि एस मोक्खमग्गो पासंडीगिहिमयाणि लिंगाणि । दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गं जिणा बेंति ।। ४९० ।। नाप्येष मोक्षमार्गः पाषण्डिगृहिमयानि लिङ्गानि । दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग जिना ब्रुवन्ति ।। ४१० ।। ५६९ टीका:- कितने ही लोग अज्ञानसे द्रव्यलिंगको मोक्षमार्ग मानते हुए मोहसे द्रव्यलिंगको ही ग्रहण करते हैं, यह ( - द्रव्यलिंगको मोक्षमार्ग मानकर ग्रहण करना सो) अनुपपन्न अर्थात् अयुक्त है; क्योंकि सभी भगवान अर्हंतदेवोंके, शुद्धज्ञानमयता होने से द्रव्यलिंग आश्रयभूत शरीरके ममत्वका त्याग होता है इसलिये शरीराश्रित द्रव्यलिंगके त्यागसे दर्शनज्ञानचारित्रकी मोक्षमार्गरूपसे उपासना देखी जाती है (अर्थात् वे शरीराश्रित द्रव्यलिंगका त्याग करके दर्शनज्ञानचारित्रको मोक्षमार्गके रूप में सेवन करते हुए देखे जाते हैं ) । सति भावार्थ:-यदि देहमय द्रव्यलिंग मोक्षका कारण होता तो अर्हंतदेव आदि देहका ममत्व छोड़कर दर्शन - ज्ञान - चारित्रका सेवन क्यों करते हैं ? द्रव्यलिंगसे ही मोक्ष प्राप्त कर लेते! इससे यह निश्चय हुआ कि - देहमय लिंग मोक्षमार्ग नहीं है, परमार्थतः दर्शनज्ञान - चारित्ररूप आत्मा ही मोक्षका मार्ग है । मुनिलिंग अरु गृहीलिंग- ये नहिं लिंग मुक्तिमार्ग है । चारित्र-दर्शन-ज्ञानको बस मोक्षमार्ग प्रभू कहे ।। ४९० ।। अब यही सिद्ध करते हैं (अर्थात् द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नहीं है, दर्शन-ज्ञानचारित्र ही मोक्षमार्ग है- यह सिद्ध करते हैं ) : Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com गाथार्थ:- [ पाषण्डिगृहिमयानि लिङ्गानि ] मुनियों और गृहस्थके लिंग (चिन्ह) [ एषः ] यह [ मोक्षमार्गः न अपि ] मोक्षमार्ग नहीं है; [ दर्शनज्ञानचारित्राणि ] दर्शन-ज्ञान-चारित्रको [ जिना: ] जिनदेव [ मोक्षमार्ग ब्रुवन्ति ] मोक्षमार्ग कहते हैं ।
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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