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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार ५३५ इति प्रतिक्रमणकल्पः समाप्तः। न करोमि, न कारयामि, कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च वाचा च कायेन चेति १। न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च वाचा चेति २। न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा च कायेन चेति ३। न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, वाचा च कायेन चेति ४। न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, मनसा चेति ५। न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि, वाचा चेति ६। न करोमि, न कारयामि, न कुर्वन्तमप्यन्यं समनुजानामि , कायेन चेति । भावार्थ:-भूत कालमें किये गये कर्मको ४९ भंगपूर्वक मिथ्या करनेवाले प्रतिक्रमण करके ज्ञानी ज्ञानस्वरूप आत्मामें लीन होकर निरंतर चैतन्यस्वरूप आत्माका अनुभव करे, इसकी यह विधि है। 'मिथ्या' कहने का प्रयोजन इसप्रकार है:-जैसे, किसी ने पहले धन कमा कर घरमें रख छोड़ा था; और फिर जब उसके प्रति ममत्व छोड़ दिया तब उसे भोगने का अभिप्राय न नहीं रहा; उस समय, भूत कालमें जो धन कमाया था वह नहीं कमाने के समान ही है; इसीप्रकार, जीवने पहले कर्म बंध किया था; फिर जब उसे अहितरूप जानकर उसके प्रति ममत्व छोड़ दिया और उसके फलमें लीन न हुआ, तब भूत कालमें जो कर्म बाँधा था वह नहीं बाँधने के समान मिथ्या ही है। २२६ । इसप्रकार प्रतिक्रमण-कल्प ( अर्थात् प्रतिक्रमणकी विधि ) समाप्त हुआ। ( अब टीकामें आलोचनाकल्प कहते हैं:-) मैं ( वर्तमानमें कर्म) न तो करता हूँ। न कराता हूँ और न अन्य करते हुएका अनुमोदन करता हूँ, मनसे, वचनसे तथा कायसे। १। मैं ( वर्तमानमें कर्म ) न तो करता हूँ, न कराता हूँ, न अन्य करते हुएका अनुमोदन करता हूँ, मनसे तथा वचनसे। २। मैं ( वर्तमानमें) न तो करता हूँ, न कराता हूँ, न अन्य करते हुएका अनुमोदन करता हूँ, मनसे तथा कायसे। ३। मैं न तो करता हूँ, न कराता हूँ, न अन्य करते हुएका अनुमोदन करता हूँ, वचनसे तथा कायसे ।। मैं न तो करता हूँ, न कराता हूँ, न अन्य करते हुएका अनुमोदन करता हूँ, मनसे। ५। मैं न तो करता हूँ, न कराता हूँ, न अन्य करते हुएका अनुमोदन करता हूँ, वचनसे। ६। मैं न तो करता हूँ, न कराता हूँ, न अन्य करते हुएका अनुमोदन करता हूँ, कायासे। ७। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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