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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार । यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३७। यदहमकार्ष वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३८। यदहमचीकरं वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ३९। यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं वाचा च कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४०। यदहमकार्षं मनसा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४१। यदहमचीकरं मनसा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४२। यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४३। यदहमकार्षं वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४४। यदहमचीकरं वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ५। यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं वाचा च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४६। यदहमकार्षं कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४७। यदहमचीकरं कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४८। यत्कुर्वन्तमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं कायेन च, तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ४९। जो मैंने (पूर्वेमें) अन्य करते हुए का अनुमोदन किया मनसे तथा कायासे, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ३७। जो मैंने (पूर्वेमें) किया वचनसे तथा कायासे , वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ३८। जो मैंने (पूर्वेमें) कराया वचनसे तथा कायासे , वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ३९। जो मैंने ( पूर्वेमें) अन्य करते हुए का अनुमोदन किया वचनसे तथा कायासे , वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ४०। जो मैंने (अतीतकाल में) किया मनसे, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ४१। जो मैंने (पूर्वेमें) कराया मनसे, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ४२। जो मैंने (पूर्वेमें) अन्य करते हुए का अनुमोदन किया मनसे, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ४३। जो मैंने (पूर्वेमें) किया वचनसे, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ४४। जो मैंने (पूर्वेमें) कराया वचनसे, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ४५। जो मैंने (पूर्वेमें) अन्य करते हुए का अनुमोदन किया वचनसे , वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ४६। जो मैंने (पूर्वेमें) किया कायासे, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ४७। जो मैंने (पूर्वेमें) कराया कायासे, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ४८। जो मैंने (पूर्वे ) अन्य करते हुए का अनुमोदन किया कायासे , वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। ४९ । (इन ४९ भंगोंके अंदर, पहले भंगमें कृत, कारित , अनुमोदना-ये तीन लिये हैं और उनपर मन, वचन, काय-ये तीन लगाये हैं। इसप्रकार बने हुए इस एक भंगको "३३ 'की समस्यासे-संज्ञासे–पहिचाना जा सकता है। २ से ४ तकके भंगोंमें कृत, कारित, अनुमोदना के तीनों लेकर उनपर मन, वचन, कायामेंसे दो दो लगाये हैं। * कृत, कारित, अनुमोदना-यह तीनों लिये गये हैं सो उन्हें बताने के लिये पहले '३'का अंक रखना, और फिर मन, वचन, काय-यह तीन लिये हैं सो उन्हें बताने के लिये उसी के पास दूसरा '३' का अंक रखना चाहिये। इसप्रकार यह '३३'की समस्या हुई। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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