SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 544
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार रागो द्वेषो मोहो जीवस्यैव चानन्यपरिणामाः। एतेन कारणेन तु शब्दादिषु न सन्ति रागादयः।। ३७१ ।। यद्धि यत्र भवति तत्तद्धाते हन्यत एव , यथा प्रदीपघाते प्रकाशो हन्यते; यत्र च यद्भवति तत्तद्धाते हन्यत एव, यथा प्रकाशघाते प्रदीपो हन्यते। यत्तु यत्र न भवति तत्तद्धाते न हन्यते, यथा घटघाते घटप्रदीपो न हन्यते; यत्र च यन्न भवति तत्तद्धाते न हन्यते, यथा घटप्रदीपघाते घटो न हन्यते। अथात्मनो धर्मा दर्शनज्ञानचारित्राणि पुद्गलद्रव्यघातेऽपि न हन्यन्ते, न च दर्शनज्ञानचारित्राणां घातेऽपि पुद्गलद्रव्यं हन्यते; एवं दर्शनज्ञानचारित्राणि पुद्गलद्रव्ये न भवन्तीत्यायाति; अन्यथा तद्धाते पुद्गलद्रव्य [च ] और [ रागः द्वेषः मोहः ] राग, द्वेष और मोह [ जीवस्य एव ] जीवके ही [ अनन्यपरिणामाः] अनन्य (एकरूप) परिणाम हैं. [एतेन कारणेन त] इस कारणसे [ रागादयः] रागादिक [ शब्दादिषु ] शब्दादि विषयोंमें (भी) [ न सन्ति ] नहीं है। (रागद्वेषादि न तो सम्यग्दृष्टि आत्मामें है और न जड़ विषयोंमें, वे मात्र अज्ञानदशामें रहनेवाले जीवके परिणाम हैं।) टीका:-वास्तवमें जो जिसमें होता है वह उसका घात होनेपर नष्ट होता ही है (अर्थात् आधारका घात होनेपर आधेयका घात हो ही जाता है), जैसे दीपकके घात होनेपर ( उसमें रहने वाला) प्रकाश हो जाता है; तथा जिमें जो होता है वह उसका नाश होनेपर अवश्य नष्ट हो जाता है (अर्थात् आधेयका घात होनेपर आधारका घात हो ही जाता है), जैसे प्रकाशका घात होनेपर दीपकका घात हो जाता है। और जो जिसमें नहीं होता वह उसका घात होनेपर नष्ट नहीं होता, जैसे घड़ेका नाश होनेपर “घट-प्रदीप का नाश नहीं होता; तथा जिसमें जो नहीं होता वह उसका घात होनेपर नष्ट नहीं होता, जैसे घट-प्रदीपका घात होनेपर घट का घात नहीं होता। (इसप्रकार से न्याय कहा है।) अब, आत्माके धर्म-दर्शन, ज्ञान और चारित्र-पुद्गलद्रव्यका घात होनेपर भी नष्ट नहीं होते और दर्शन-ज्ञान-चारित्रका घात होनेपर भी पुद्गलद्रव्यका नाश नहीं होता ( यह तो स्पष्ट है); इसलिये इसप्रकार यह सिद्ध होता है कि 'दर्शन-ज्ञान-चारित्र पुद्गलद्रव्यमें नहीं हैं'; क्योंकि, यदि ऐसा न हो तो दर्शन-ज्ञान-चारिश्का घात होनेपर * घट-प्रदीप = घड़ेमें रखा हुआ दीपक। ( परमार्थतः दीपक घड़ेमें नहीं है, घड़े के ही गुण हैं।) Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy