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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ४९४ जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि। तह पासगो दु ण परस्स पासगो पासगो सो दु।।३५७ ।। जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि। तह संजदो दु ण परस्स संजदो संजदो सो दु।। ३५८ ।। जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि। तह दंसणं दु ण परस्स दंसणं दंसणं तं तु।। ३५९ ।। एवं तु णिच्छयणयस्स भासिदं णाणदंसणचरित्ते। सुणु ववहारणयस्स य वत्तव्वं से समासेण।।३६० ।। जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण। तह परदव्वं जाणदि णादा वि सएण भावेण।। ३६१ ।। जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण। तह परदव्वं पस्सदि जीवो वि सएण भावेण ।। ३६२ ।। ज्यों सेटिका नहिं अन्य की, है सेटिका बस सेटिका । दर्शक नहीं त्यों अन्यका, दर्शक अहो दर्शक तथा ।। ३५७।। ज्यों सेटिका नहिं अन्य की , है सेटिका बस सेटिका । संयत नहीं त्यों अन्यका, संयत अहो संयत तथा ।। ३५८ ।। ज्यों सेटिका नहिं अन्य की, है सेटिका बस सेटिका । दर्शन नहीं त्यों अन्यका , दर्शन अहो दर्शन तथा ।। ३५९ ।। यों ज्ञान-दर्शन-चरितविषयक कथन नय परमार्थका । सुनलो वचन संक्षेपसे, इस विषयमें व्यवहारका ।। ३६०।। ज्यों श्वेत करती सेटिका, परद्रव्य आप स्वभावसे । ज्ञाता भी त्यों ही जानता, परद्रव्यको निज भावसे ।। ३६१ । ज्यों श्वेत करती सेटिका, परद्रव्य आप स्वभावसे । आत्मा भी त्यों ही देखता, परद्रव्यको निज भाव से ।। ३६२।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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