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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ४३६ स्तेयादीनपराधान् यः करोति स तु शङ्कितो भ्रमति। मा बध्ये केनापि चौर इति जने विचरन्।। ३०१ ।। यो न करोत्यपराधान् स निरशङ्कस्तु जनपदे भ्रमति। नापि तस्य बद्धं यच्चिन्तोत्पद्यते कदाचित्।।३०२ ।। एवमस्मि सापराधो बध्येऽहं तु शङ्कितश्चेतयिता। यदि पुनर्निरपराधो निरशङ्कोऽहं न बध्ये।। ३०३ ।। यथात्र लोके य एव परद्रव्यग्रहणलक्षणमपराधं करोति तस्यै बन्ध शङ्का सम्भवति, यस्तु तं न करोति तस्य सा न सम्भवति; तथात्मापि य एवाशुद्धः सन् परद्रव्यग्रहणलक्षणमपराधं करोति तस्यैव बन्धशङ्का सम्भवति, यस्तु शुद्धः संस्तं न करोति तस्य सा न सम्भवतीति नियमः। अतः सर्वथा सर्वपरकीयभावपरिहारेण शुद्ध आत्मा गृहीतव्यः, तथा सत्येव निरपराधत्वात्।। गाथार्थ:- [ यः ] जो पुरुष [ स्तेयादीन् अपराधान् ] चोरी आदिके अपराध [ करोति ] करता है [ सः तु] वह [ जने विचरन् ] लोकमें घूमता हुआ [ केन अपि] मुझे कोई [चौरः इति] चोर समझकर [बध्ये ] पकड़ न ले' इसप्रकार [शङ्कितः भ्रमति ] शंकित होता हुआ घूमता है; [ यः ] जो पुरुष [अपराधान् ] अपराध [न करोति ] नहीं करता [ सः तु] वह [ जनपदे ] लोकमें [ निरशङ्क: भ्रमति] निःशंक घूमता है, [ यद् ] क्योंकि [ तस्य ] उसे [बद्धं चिन्ता] बंधने की चिंता [ कदाचित् अपि] कभी भी [न उत्पद्यते] उत्पन्न नहीं होती। [ एवम् ] इसीप्रकार [ चेतयिता] अपराधी आत्मा [सापराधः अस्मि] मैं अपराधी हूँ [ बध्ये तु अहम् ] इसलिये मैं बँधूंगा' इसप्रकार [ शङ्कित:] शंकित होता है, [ यदि पुनः ] और यदि [ निरपराध:] अपराध रहित (आत्मा) हो तो '[ अहं न बध्ये ] मैं नहीं बँधूंगा इसप्रकार [ निरशङ्क: ] निःशंक होता है। टीका:-जैसे इस जगतमें जो पुरुष, परद्रव्यका ग्रहण जिसका लक्षण है ऐसा अपराध करता है उसीको बंधकी शंका होती है और जो अपराध नहीं करता उसे बंध की शंका नहीं होती, इसीप्रकार आत्मा भी अशुद्ध वर्तता हुआ, परद्रव्यका ग्रहण जिसका लक्षण है ऐसा अपराध करता है उसीको बंधकी शंका होती है और जो शुद्ध वर्तता हुआ अपराध नहीं करता उसे बंधकी शंका नहीं होती-ऐसा नियम है। इसलिये सर्वथा समस्त परकीय भावोंके परिहार द्वारा (अर्थात् परद्रव्यके सर्व भावोंको छोड़कर) शुद्ध आत्माको ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने पर ही निरपराधता होती है। भावार्थ:-यदि मनुष्य चोरी आदि अपराध करे तो उसे बंधकी शंका हो; निरपराधको शंका क्यों होगी? इसीप्रकार यदि आत्मा परद्रव्यका ग्रहणरूप अपराध करे तो उसे बंधकी शंका अवश्य होगी; यदि अपनेको शुद्ध अनुभव करे, Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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